आपका-अख्तर खान

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23 जून 2015

आपातकाल के दौरान सरकार के शोषण उत्पीड़न से पीड़ित लोग अपने इन्साफ की लड़ाई के लिए संघर्ष कर रहे है

दोस्तों आपातकाल के दौरान सरकार के शोषण उत्पीड़न से पीड़ित लोग अपने इन्साफ की लड़ाई के लिए संघर्ष कर रहे है ,,,लोकतंत्र संरक्षक जंगजू सिपाही भाई फरीदुल्ला अपने साथियों के साथ इस जंग को लड़कर काफी हद तक जीतने में कामयाब हो गए है ,,लेकिन राजस्थान सहित कई राज्य ऐसे है जहा आज भी आपातकाल के पीड़ित शोषित लोग इन्साफ के संघर्ष कर रहे है ,,,,,जी हाँ दोस्तों वर्ष उन्नीस सो सतत्तर का वोह काला अध्याय जिस वक़्त देश के संवीधान को ताक़ में रखकर देशवासियों के सभी संवेधानिक अधिकार ज़ब्त कर लिए गए थे ,,,जो लोग जंगजू थे ,,लोकतंत्र के प्रहरी थे ,,,,उन्होंने इस शोषण ,,उत्पीड़न ,,ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ बुलंद की नतीजन उन्हें बदले की भावना से जेलों में ठूंस दिया गया जिन्हे बाद में डी आई आर ,,,मीसा बंदी का नाम दिया गया ,,ज़ेल में भी इन लोकतंत्र के प्रहरियों के साथ सरकार के इशारे पर दमनकारी कार्यवाहियां की गई लेकिन यह लोकतंत्र के प्रहरी ना डरे ,,न घबराये ,,लोकतंत्र बहाली के लिए संघर्ष करते रहे ,,सरकार को इन संघर्ष शील जंगजू लोगों के आगे झुकना पढ़ा ,,,एक बार फिर आपातकाल के गुलाम भारत को इन लोकतंत्र प्रहरी सेनानियों की वजह से आज़ादी मिली ,,लोकतंत्र की बहाली हुए सरकार बदली ,,,,संघर्षशील लोकतंत्र प्रहरियों के दो हिस्से हो गए एक दल तो सत्ता की चाशनी में मंत्री ,,,,,सहित कई महत्वपूर्ण पद लेकर ज़ीरो से हीरो बने ,,सड़कछाप से अरबपति बनते चले गए ,,लेकिन जो लोग ईमानदार थे ,,जो लोग मूल्यों की राजनीती पर ज़िंदा थे वोह जैसे थे वैसे ही रहे ,,उनकी क़ुर्बानियों का सिला उन्हें नहीं मिला ,,,,,उनके परिजनों से अलग थलग रहकर उनकी जेल की पीड़ा का दर्द उन्हें सालता रहा ,,ऐसे में एक हीरो भाई फरीदुल्ला खान ने सभी साथियों को एक जुट किया ,,,,,हाड़ोती के इस शेर पर पुलिस ज़ुल्म अत्याचार की बेदर्द कहानी थी लेकिन किसी भी ज़ुल्म के आगे भाई फरीदुल्ला न झुके ,,न टूटे नतीजन सरकार इनसे घबराने लगी ,,,,फरीदुल्ला और साथियों ने लोकतंत्र के संरक्षक सेनानियों का एक अलग संघठन बनाया जो लोग सत्ता में रहकर मीसा बंदी के नाम पर चाशनी चूस रहे थे उनसे सम्पर्क किया लेकिन वोह तो सत्ता में मदमस्त थे नतीजन फरीदुल्ला भाई और साथियों ने सुचना के अधिकार के तहत ऐसे लोगों की सम्पत्तियों की जानकारी चाहि वोह घबरा गए ,,,,पुरे देश में एक आंदोलन खड़ा हुआ और कई राज्यों में लोकतंत्र के इन प्रहरियों को सेनानियों का विशिष्ठ दर्जा देकर इनकी पेंशन योजना शुरू कर इन्हे विशिष्ठ लाभ देने की घोषनाये की गई ,,राजस्थान सहित कई कांग्रेस शासित राज्य इस मामले में पिछड़ गए और कई राज्यों में ऐसे जंगजू सिपाहियों को लाभ नहीं मिल सका ,,सेकड़ो लोग अपने मान सम्मान की पुनर्स्थापना के इन्तिज़ार में मोत के शिकार हो गए ,,,,कई लोग और उनका परिवार आज भी आहत है ,,पेंशन योजना क़ानूनी पेचीदगियों कलेक्टर ,,बाबुओं के वेिरफिकेशन में उलझती चली गई ,,,नतीजा आज कई लोकतंत्र के प्रहरी फ्रस्टेशन में है ,,,उनकी वाणी से आपा खो बैठे है ,,लोकतंत्र के कई सरंक्षक प्रहरी तो निराशावाद के इस दौर में आ गए है के वोह किसी दूसरी पार्टी ,,किसी दूसरे व्यक्ति के किसी भी अलफ़ाज़ पर उसे खाने को दौड़ते है ,,,उसके लिए अपशब्द भी कह देते है कुल मिलाकर ऐसे लोगों के साथ जो सरकार द्वारा विश्वासघात किया जा रहा है उससे वोह उत्पीड़ित है और वोह यह भूल गए के जिस लोकतंत्र की आज़ादी जिस वाक् अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने संघर्ष किया था आज वाही लिखने वालों के साथ मीसा बंदियों जैसा अत्याचार अपनी वाणी अपने अल्फ़ाज़ों से आकर रहे है ,,,,,देश में आज भाजपा की सरकार है ,,,,,,,,,,केंद्र में लोकतंत्र के प्रहरी है राज्यों में अलग अलग सरकार है कई राज्यों में मीसा बंदियों को उनका हक़ नहीं मिल पा रहा है उनके साथ अत्याचार हो रहा है और इसीलिए वोह गुस्से और सदमे में दूसरे लोगों के वाक् अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मीसा बंदियों के खिलाफ अत्याचारियों की तरह हो गए है उनका बर्ताव मोहब्बताना नहीं क्रोध स्वभाव वाला होता जा रहा है ,,,बात वाजिब भी है सब्र वाले और वैचारिक मतभेदों से ऊपर उठकर वाक् एवं अभिव्यक्ति सम्मान करने वाले तो ठीक है लेकिन जो लोग निराशावाद में है ,,अतिउत्साही होने लगे है उनके इंसाफ के लिए हमे और आपको संघर्ष करना होगा ,,,मेरे कुछ सुझाव है जो सभी मीसा बंदी अगर एक जुट हो जाए तो एक हफ्ते में उनका मान सम्मान उन्हें मिल सकता है ,,,सभी मीसाबंदी राज्यों की पेंशन और लाभों की जगह सिर्फ केंद्र से नीति नियम बनवाकर केंद्र के बजट से ही पेंशन और दूसरी सुविधाये सांसदों के बराबर प्राप्त करे ,,,नरेंद्र मोदी मीसा का दर्द तो नहीं समझेंगे लेकिन लोकतंत्र के वोह सच्चे प्रहरी है अगर उन्हें समझाया जाए के देश के सभी मीसाबंदियों को केंद्र अपने बजट से क़ानून बनाकर समान पेंशन दे ,,,केंद्र मीसा बंदियों को विशेष लोकतंत्र बचाओ संघर्ष के सेनानी का दर्जा देकर उन्हें पेंशन के साथ ,,उन्हें व् परिजनों को चिकित्सा सुविधा ,,यात्रा भत्ता ,,सर्किट हाउस में रियायती दर पर ठहरने का अधिकार ,,संसद और विधानसभाओ में आने जाने का पास और वहां केन्टीन में एक रूपये वाले रियायती मूल्य पर खाने का अधिकार दे ,,, छब्बीस जनवरी ,,पन्द्राह अगस्त के कार्यक्रमों में मीसा बंदियों को दिल्ली समारोह में राजकीय अतिथि के रूप में निमंत्रण का क़ानून हो ,,,देश के सभी ज़िलाकलकेटरो को निर्देश हो के उनके क्षेत्र में मीसाबंदियों से तीन माह में एक बार बैठक कर उनके हाल जाने ,,समस्याओं का समाधान करे और ज़िले की समस्याओं पर भी ऐसे जांबाज़ लोकतंत्र के प्रहरियों से चर्चा हो ,,,,,,,,,,,,विधि नियमों में लिखा जाए के जो मीसा बंदी संघर्ष के दौरान मोत का ग्रास बन गए है उनके नाम से उनके ज़िले में एक स्मारक ज़रूर बनाया जाए ,,,मीसा बंदियों मृत्यु पर उनका अंतिम संस्कार लोकतंत्र के संघर्ष जवान की हैसियत से राजकीय सम्मान के साथ तिरंगे में लपेट कर इक्कीस तोपों की सलामी के साथ किया जाए ,,,,,मीसा बंदियों के अनुभवों को देखते हुए उन्हें विशिष्ठ राजकीय समितियों में उनके सुझावों का लाभ लेने के लिए नामज़द किया जाए जबकि मीसा बंदियों को विशेष रूप से रियायती दर पर रहने के लिए मकान ,,पेट्रोल पम्प ,,गैस एजेंसियों के लाइसेसं का पृथक कोटा निर्धारित किया जाए ,,,,,दोस्तों बाद कड़वो ज़रूर है लेकिन सच्ची है झुनझुने तो सबको पकड़वाए जाते है लेकिन लोकतंत्र के रक्षक ,,लोकतंत्र के लिए जेल काटने वाला कोई भी शख्स किसी व्यक्ति ,,किसी पार्टी ,,किसी धर्म ,,किसी विचारधारा का गुलाम नहीं होता वोह तो सिर्फ आज़ाद सिर्फ आज़ाद होता है और ऐसा आज़ाद शख्स लोकतंत्र की रक्षा के लिए ,,सच के संघर्ष के लिए सत्ता में चाहे कोई भी हो उससे संघर्ष करने का माद्दा रखता है क्योंकि जो दुम हिलाने वाले थे वोह तो पहले ही सत्ता की चाशनी में सराबोर है और जो सच के संघर्ष करने वाले लोग है वोह आज भी संघर्ष कर रहे है ,,,ऐसे में अगर यह सच बोलने वाले पार्टी ,,धर्म ,,निजी गुलामी की ज़ंजीरें तोड़कर ,,भारत के लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी कहे जाने वाले प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी पर दबाव बनाये और सभी मीसा बंदियों को एक समान वेतन ,भत्ते ,,पेंशन लाभ और ऊपर लिखी सुविधाये देने का क़ानून बनजाये तो संसद में इनका अपना बहुमत है ,,राजयसभा में कांग्रेस अल्पमत में है लेकिन मीसा बंदियों के साथी राजनितिक दल भी राजयसभा में बढ़ी संख्या में है जो इस विधेयक नियम को राजयसभा में भी तुरंत पारित करवाकर देश भर के मीसा बंदियों को उनका हक़ ,,इन्साफ दिलवा सकते है ,,दोस्तों अगर नरेंद्र मोदी से सभी मीसाबंदी एक जुट होकर यह सब करवापाने में नाकाम रहे तो अलग अलग राज्य तो अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग अलापते रहेंगे ,,,मीसा बंदियों को उनका हक़ दिलाने के लिए भाई फरीदुल्ला ही एक ऐसी शख्सियत है जो सभी लोगों को जोड़ कर एक साथ एक जुट होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मीसा बंदियों का हक़ छीन सकते है ,,इस लड़ाई में में खुद हर मीसाबंदी के साथ जो खुले विचारो के साथ आज़ाद है ,,खुलेमन से मीसाबंदियों के साथ है उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष करने को तैयार हूँ ,,,,,,,,,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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