आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

27 जून 2015

ज़िंदगी दर्द

ज़िंदगी दर्द में डुबोने से
चैन मिलता है मुझको रोने से
उनको कुछ फर्क ही नहीं पड़ता
मेरे होने से या न होने से
कुछ भी होगा न अब तुम्हे हासिल
ख़वाब बंजर ज़मीं में बोने से
तेरी किस्मत बदल न पाएगी
रात दिन सिर्फ़ रोने धोने से
देखो मिलती है कब निजात सिया
लाश काँधे पे अपनी ढोने से

1 टिप्पणी:

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...