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11 जून 2015

मैं वकील हूँ जनाब

मैं वकील हूँ जनाब
बेसाख्ता दौड़ता हूँ,
आपके अधिकारों की रक्षा के लिए।
जज्ब कर लेता हूँ
कमजोरों का दर्द
और टकरा जाता हूँ,
ताकतवर दीवारों से।
खो देता हूँ अपना अमन चैन,
और कर लेता हूँ,
अपना खाना खराब ।
देखता हूँ रात दिन कानूनी नजीरें
ताकि मिल सके आपको इन्साफ।
बेचैन रहता हूँ मैं,
आपके हकूक के लिए
वो क्या समझ पायेंगे मुझे ?
जो हर वक्त मुल्लविस रहते हैं
बदकारियों में।
तल्ख होती हैं नजरें
कभी हाकिम की ,
कभी कातिल की
रहता हूँ मगर फिर भी
बेलौस मुस्कुराता ।
हारता नहीं हूँ मैं
हार जाता है, इन्साफ।
भूल जाता है, मुद्दई
भुला देता है, मुन्सिफ
मगर होता है मातम
मेरे जेहन में।
दरकता हूँ मैं
छोटे छोटे टुकड़ों में
भर जाता है ,मेरा सीना
अन्याय और बदी के लावे से।
तड़पता हूँ मैं, बेइन्तिहा दर्द से
और सहम जाता है मेरा परिवार
रोता हूँ खून के आँसू
हर एक नाइन्साफी पर..
हाँ मैं वकील हूँ
कलम का सिपाही हूँ
हर रोज लड़ता हूँ मैं
नाइन्साफी के खिलाफ जंग,
समाज के लिए,
ताकि सलामत रहें आपके हक।
हाँ, जी हाँ
मैं वकील हूँ!!

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