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ग़ुलाम अली के जवां साल चार बेटों के
ड्राफ़्ट आए है इस बार भी सदा की तरह
क़ुवैत से
जिद्दा – दुबई से
तो कुछ कनाडा से
हर इक के साथ लिफाफे मैं एक सी तहरीर
“अलील* आप है पापा ख्याल अपना रखें
ग़िज़ा मैं और दवा में न कोई गफलत हो
हर एक तौर से आराम हो
सहूलत हो
डाफ्ट भेज रहे हैं दुआ के तालिब है” !
पड़ी है शहर के सरकारी मुर्दा खाने में
बशक्ले मय्यत बेकस
ग़ुलाम अली की लाश
फटी फटी आँखों से रास्ता तकती
उन उंगलियों का जो पलकों से आँख ढक जाऐं !
“कहां गये वो जिगर के पारे
आँख के तारे”
वो जिसके चार हैं वारिस
पडा है लावारिस
मोहल्ला वालों ने चल के
जनाजा उठवाया
वोह चार बेटे जो काफी थे कंधा देने को
न आ सके घर , उनके चार ड्राफ्टस आये हैं !!
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