आपका-अख्तर खान

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28 जून 2015

मारो

मारो कितनों को मारोगे
हर बार कलम से हारोगे
तुम करते जब-जब फायर हो
साबित होता तुम कायर हो
तुम कलम के आगे टूट गए
माथे से पसीने छूट गए
खुश हो जगेंद्र को जला दिया
संदीप को चिरनींद सुला दिया
एके सैंतालीस भी ले आओ
बन चोर चालीस चले आओ
फिर भी कलम न बंद होगी
पत्रकार शक्ति बुलंद होगी
हम रक्त बीज बन जाएंगे
हम अपना शीष कटाएंगे
तुम एक जगेंद्र को मारोगे
हम शहस्त्र जगेंद्र बनाएंगे
हम गोली छाती पर खालेंगे
फिर भी अखबार निकालेंगे
न डरे है न डरेंगे खबरें तो दिखलायेंगे..

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