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14 मई 2015

एक लड़की दीवानी सी

एक लड़की दीवानी सी
अल्हड सी सांवली सी
तीखे नयन नक़्श वाली
खूबसूरत सी
जो मुझ पर मरती है ,,
एक लड़की दीवानी सी
जो इतराती है ,,इठलाती है
कभी मुझ पर लिखती है
कभी मुझ पर गीत गाती है
कभी इंकार करती है
कभी इक़रार करती है
एक लड़की दीवानी सी
जो मुझ पर मरती है
मेरे प्यार में
मेरी चाहत में
मुझे खो देने के डर में
मेरे छीन जाने के खतरे में
पागलों सी हो जाती है
मुझ से रूठती है
मुझ से गुस्से होती है
मुझे अदाएं दिखाती है
वोह मुझ पर मरती है ,,
मुझे उसकी हर अदा
मुझे उसकी हर नाराज़गी
हर अदाकारी में
मुझे बस प्यार ,,अपनापन
मोहब्बत नज़र आती है
मुझे इस दीवानी की हर अदा
हर अंदाज़ प्यारा सा लगता है
इस दीवानी के रुठते ही
में दीवाना सा
पागल सा हो जाता हूँ
जितना वोह मुझ पर मरती है
उससे कई गुना ज़्यादा
में भी उसपर सिर्फ उस पर मरता हूँ
एक लड़की पागल सी दीवानी सी
जिसका में पागल सा दीवाना सा ,,,,,,,,,,,,,,,,,अख्तर

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