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10 मई 2015

बेटों की तुलना में 36% तक ज्यादा गोद ली गईं बेटियां, गोद लेने में महाराष्ट्र सबसे आगे

एक नहीं दो बेटियों को लिया गोद
एक नहीं दो बेटियों को लिया गोद
नई दिल्ली। देश में बेटों से ज्यादा बेटियां गोद ली जा रही हैं। सेंट्रल एडाॅप्शन रिसाेर्स अथॉरिटी (कारा) की ताजा रिपोर्ट में ये बात सामने आई है। कारा के मुताबिक पिछले साल यानी 2014-15 में 2300 लड़कियां गोद ली गईं। जबकि लड़कों का आंकड़ा 1688 रहा। यानी लोगों ने बेटों के मुकाबले करीब 36% ज्यादा बेटियों को चुना। और ये तब जबकि बेटियों को गोद लेने के कानून ज्यादा सख्त हैं। मसलन सिंगल फादर है तो बेटी नहीं मिलेगी। कारा के डायरेक्टर वीरेंद्र मिश्रा ने बताया कि गोद लेने के मामले में महाराष्ट्र सबसे आगे है।
पिछले साल 947 बच्चे सिर्फ महाराष्ट्र में गोद लिए गए। इस बीच गोद लेने के नियम आसान करने के लिए सरकार ने 7 मई को संसद में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में संशोधन बिल पेश किया है। यह लोकसभा से पास हो चुका है। सोमवार या मंगलवार को राज्यसभा में चर्चा होनी है। उधर कारा गाेद लेने की प्रक्रिया माहभर में सेंट्रलाइज करने जा रही है। इसके बाद कारा ही बच्चे की प्रोफाइल पेरेंट्स को भेजेगा। पहली बार इसको लेकर टीवी एड भी दिए जा रहे हैं।
गोद लेना आसान करने के लिए आया नया बिल, एक महीने में सेंट्रलाइज होगी पूरी प्रक्रिया
2014-15 : 2300 लड़कियां गोद ली गईं, लड़के 1688
2013-14 : 2293 लड़कियां और 1631 लड़के गोद लिए गए
सिंगल मदर : एक नहीं, दो बेटियां गोद ली लेकिन लग गए तीन साल
मालिनी परमार 26 साल की थी जब सुष्मिता सेन की बेटी एडॉप्ट करनेवाली खबर पढ़ी। पेशे से इंजीनियर मालिनी एक दिन मेडिटेशन कर रही थी। उन्हें लगा जैसे कोई मां बुला रही है। समझ गई रिसर्च का वक्त खत्म हुआ और एडॉप्शन की प्रक्रिया शुरू कर दी। मिल भी गई। पर वो एक साथ दो बेटियां गोद लेना चाहती थीं। इसलिए कानूनी प्रक्रिया में तीन साल लग गए। दोनों बहनें हैं। मालिनी कहती हैं मां और बहन पहले दिन से मेरे साथ थी, बाकी रिश्तेदारों का दिल मेरी बेटियों ने जीत लिया।
फर्स्ट एडाप्शन: 3 बेटे थे, 3 बेटियां गोद ली
1979 में ये शायद देश का पहला कानूनी एडॉप्शन था। वरना लोग सिर्फ परिवार या पहचान वालों के बच्चे ही गोद लेते थे। बेंगलुरू में बच्चों की डॉक्टर अलोमा लोबो के तीन बेटे थे। फिर भी उन्होंने तीन बेटियां गोद लेने का फैसला किया। बड़ी बेटी 36 साल की है और सबसे छोटी निशा 15 साल की। निशा को स्किन की बीमारी भी है। डॉ. लोबो कहती हैं अगर हम बच्चा गोद लेकर ये सोचते हैं कि ये चैरिटी है तो हम गलत हैं। हम ऐसा अपने लिए करते हैं, बच्चे के लिए नहीं।

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