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10 अप्रैल 2015

आदिवासी परंपरा: लिव-इन से पैदा हुए बच्‍चे बड़े होकर कराते हैं मां-बाप की शादी

गणगौर मेला जहां लिव-इन रिलेशनशिप के लिए ढूंढा जाता है साथी।
गणगौर मेला जहां लिव-इन रिलेशनशिप के लिए ढूंढा जाता है साथी।
आबू रोड. सुप्रीम कोर्ट ने एक साल पहले लिव-इन रिलेशनशिप पर कानूनी मुहर लगाते हुए इस रिश्ते से पैदा हुए बच्चों को मान्यता दी थी। लेकिन राजस्थान के अाबू रोड स्थित कई आदिवासी गांवों में लिव-इन रिलेशनशिप का कॉन्सेप्ट काफी पुराना और सामाजिक तौर पर मान्य है। आदिवासियों की इस परंपरा का एक रोचक तथ्य यह है कि आम तौर पर लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़े के बच्चे ही बड़े होने पर अपने मां-बाप की शादी कराते हैं। हर साल गणगौर मेले में लड़का और लड़की अपना लिव-इन पार्टनर चुनते हैं। इस साल यह मेला गुरुवार को संपन्न हुआ और इस मेले में भी लड़के-लड़कियों ने अपना लिव-इन पार्टनर चुना।
ऐसे तय होता है पार्टनर
गणगौर मेला हर साल अप्रैल महीने में लगता है। इस मेले में आने वाले लड़के-लड़की एक-दूसरे को पसंद करने के बाद वहां से भाग जाते हैं। ये लोग अपने गांव को छोड़कर किसी दूसरे गांव में पति-पत्नी की तरह रहने लगते हैं और अपने साथ रहने की सूचना परिवारों को भेज देते हैं। अगर दोनों के परिवार शादी के लिए तैयार हो जाते हैं तो शादी करा दी जाती है और अगर नहीं तो वे अपना जीवन लिव-इन में ही गुजारते हैं। लिव-इन में रहते हुए ही इनके बच्चे भी होते हैं। लेकिन परंपरा यहीं आकर और रोचक हो जाती है, जब लिव-इन से पैदा हुए बच्चे ही बड़े होकर और अपना लाइफ पार्टनर चुनने से पहले अपने मां-बाप की शादी कराते हैं। जब वे अपने मां-बाप की शादी करा देते हैं, तो उनके इन्हीं पेरेंट्स को आदिवासी समाज में मान्यता मिल जाती है और वे अपने गांव लौटने के लिए भी आजाद हो जाते हैं।

क्या है गणगौर मेला
आदिवासियों में यह मेला काफी लोकप्रिय है और लड़के-लड़कियों को साल भर इसका इंतजार रहता है। गण का अर्थ शिव और गौर का अर्थ गौरा यानी माता पार्वती है। मेले में गणगौर की मिट्टी से बनी मूर्तियों की एक रात पहले पूजा की जाती है और अगले दिन इन्हें नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। मेले में लगभग पूरा आदिवासी समाज शिरकत करता है। मेले के मैनेजमेंट का जिम्मा बुजुर्गों के पास ही रहता है। लड़के-लड़की जब अपना लिव-इन पार्टनर चुनने के बाद उसे भगाकर ले जाते हैं तब इसे ‘खींचना’ प्रथा कहा जाता है।
क्या कहते हैं समाज के मुखिया
‘यह मेला हमारी समाज में सिसोदिया वंश ने शुरू किया था। मेले की चर्चित खींचना प्रथा भी उसी समय से चली आ रही है। मैंने 15 साल पहले इसी मेले में अपने लिए लाइफ पार्टनर चुना था और आज हमारे चार बच्चे हैं।’
- लालाराम गरासिया, प्रधान पंचायत समिति, आबू रोड

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