आपका-अख्तर खान

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21 अप्रैल 2015

ना ना करते आखिर

ना ना करते आखिर
में तुम्हारी बाहों में आकर
झूल ही गया
लेकिन तुम कहते हो
लोट के बुद्धू
घर को आये ,,
तुम जो कहते हो
सही बिलकुल सही कहते हो
तुम्ही बताओ
तुम्हारा दिल कैसे में तोडपाता
यह दिल
सीने में तो तुम्हारे है लेकिन
धड़कता तो मेरे लिए है
कहने को यह दिल
तुम्हारे जिस्म में है
लेकिन है तो मेरे लिए
तुम्हारी आँखे
तुम्हारी ज़रूर है
लेकिन इसमें चमक तो मेरी है
में इन आँखों को
जो मेरी है
उन्हें रुलाउ क्यों ,,,अख्तर

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