अमृतसर। आज वैशाखी है। आज ही के दिन सिक्खों के दूसरे गुरु
अंगद देव का जन्म हुआ था। गुरु अंगद देव का सृजनात्मक व्यक्तित्व था। गुरु
अंगद पंजाबी भाषा गुरुमुखी के जन्मदाता थे। उन्होंने सिक्खों के पवित्र
ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब के कई हिस्सों की रचना की थी। गुरुनानक देवजी ने
उन्हें अपना उत्ताराधिकारी बनाने से पहले उनकी सात परीक्षाएं ली थीं। गुरु
अंगद देव के जन्मदिवस के अवसर पर dainikbhaskar.com बता रहा है उनसे जुड़ी
कुछ खास बातें...
गुरु अंगद साहिब जी का जन्म पंजाब, फिरोजपुर के हरीके नामक गांव में
वैशाख वदी 1, (पंचम् वैशाख) सम्वत 1561 (31 मार्च, सन् 1504) को हुआ था।
गुरुजी एक व्यापारी श्री फेरू जी के पुत्र थे। उनकी माताजी का नाम रामो जी
था। बाबा नारायण दास त्रेहन उनके दादा जी थे।
विवाह- गुरु अंगद साहिबजी की शादी खडूर निवासी देवी चंद क्षत्री की बेटी खीवी जी के साथ हुई थी। उनके दो पुत्र दो बेटियां थीं।
गुरु दर्शन- कहा जाता है कि गुरु अंगदजी एक बार वैष्णोंदेवी के दर्शन के लिए जम्मू
जा रहे थे। उनके भाई जोधा सिंह ने गुरूनानक देवजी के दर्शन करने को कहा।
जब गुरु अंगदजी अपने साथियों के साथ करतारपुर के पास से जा रहे थे तो
गुरुनानक देवजी के डेरे में आ गए। गुरुजी के पूछने पर उन्होंने बताया, "मैं
खडूर संगत के साथ मिलकर वैष्णो देवी के दर्शन करने जा रहा हूं। आपकी महिमा
सुनकर दर्शन करने की इच्छा पैदा हुई। कृपा करके आप मुझे उपदेश दो जिससे
मेरा जीवन सफल हो जाये।" गुरुजी ने कहा, "भाई लहिणा तुझे प्रभु ने वरदान
दिया है, तुमने लेना है और हमने देना है। अकाल पुरख की भक्ति किया करो। यह
देवी देवता सब उसके ही बनाये हुए हैं।
बहुत ही बढ़िया जानकारी ...
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