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11 अप्रैल 2015

टोंक घंटा घर टोंक के बीच बनने वाली पहली इमारत

टोंक घंटा घर टोंक के बीच बनने वाली पहली इमारत थी यह ऐसी ईमारत बानी जिस ने नवाब सादात अलीखान को टोंक में इमारतों के निर्माण का शोक ही लगा दिया ठीक इसके बाद पुराना पुल या फ्रेजर ब्रीज़ सआदत अस्पताल और सआदत पवेलियन बनके तैयर हुआ लेकिन टोंक के इस अजीमओ शान निर्माण के पीछे जो नीव की ईट बनके रहे गए शायद ही उनका कोई नाम जनता हो आज में आप को उनमे से एक शख्स का परिचय दुगा साथ ही कुछ तथ्य जिस ने टोंक की किस्मत में इन इमारतों के निर्माण में नीव की इट का काम किया साहिबज़ाद हामिद अलीखान साहिब 1930 में जब सादात अलीखान नवाब बने तो आप अग्रेजो और नवाब की तरफ से टोंक के नाजिम थे और वर्तमान नगर परिषद आप ही ने सरकार की तरफ से बनाया गया आप का दफ़्तर था आप का काम टोंक में विकास ,न्याय व्यवथा करना था टोंक में आखरी फांसी(मौत ) की सजा भी आप के दवारा दी गई थी और जहां सजा दी जाती थी वो स्थान रसिया की टेकरी के सामने स्थित पहाड़ पर बानी कोठरी थी शयद अब मंदिर में तब्दील हो गई हो जहां आज घंटा घर है वहाँ उस समय मैदान हुआ करता था और सामने की इमारते में किलास आठ तक का बॉय स्कुल हुआ करता था जो वहाँ दूसरी इमारत थी दसवी की पढ़ाई के लिय पाकिस्तान स्थित लाहोर जाना पड़ता था इस मैदान में टोंक के किसान बैठा करते थे और नाज़िम साहब को अच्छा नही लगता था की किसान इस तरह बेतरतीब बैठे उन्होंने किसानो के बैठने के लिय एक बेहतर इमारत का नशा आपने हाथो से बनाया और टोंक के जमीदारो से 15 से 20 पैसे हर एक जमीदार से लिय कुछ पैसा नवाब साहिब से लिया और कुछ खुद ने गहन किया लेकिन उनके अनुसार ज्यादा पैसा जमींदरो से लिया गया और एक दिन टोंक में एलान किया गया की टोंक के फरोज बगाह के पास स्थित मैदान में नवाब साहिब एक इमारत जो किसानो के बैठने की जगह होगी की नीव रखने जारहे है वो दिन भी आया नाज़िम साहब अपनी गाड़ी से उस मैदान में पहुंचे नीव तैयार की जा चुकी थी सिर्फ इमारत की बुनियाद रखनी थी बुनियाद रखने के लिय नवाब साहिब आपने शाही जुलुस के साथ नज़र बाग़ से रवाना हुआ लोगो की भीड़ रस्ते में इखट्टा होने लगी शाही जुलुस और सवारी को देखने के लिय चश्म दीद के अनुसार कुछ घोड़ो पर और पैदल लोग नवाब साहिब के साथथे नवाब साहब अपन शाही बग्गी जिसमे चार घोड़े जूते थे में नाजिम साहब के साथ बैठे थे जब जुलुस बुनियाद वाले स्थान पर पहुंचा तो नाज़िम साहब को चुने से बहरी लगनी (विशेष परात) जो चांदी से बानी थी मज़दूर ने हाथ में दी और पास ही खड़े नवाब साहब को बाअदब एक छोटी सोने से बानी करची दी उन्होंने लगनी से चुना करनी में लेकर टोंक घंटा घर की नीव रखी चश्म दीद के अनुसार उस समय चांदी का भाव ढाई आना (12 .5 पैसे तोला था ) और सोने का भाव 25 रुपये तोला था करनी और लगनी सरकारी सुनार जो नौशे मिया की पुलिया के समीप था ने बनाई थी नाज़िम साहब के अनुसार इसके बाद जब इमारत चार खान पर पुछुचि तब नाज़िम साहब देहली से शिकोज़ा कंपनी जो रूस की थी के बेहतरीन चार घंटे खरीद कर लाये ऐसी बीच उन्होंने सादात अस्पताल गांधी पार्क , पवेलियन का नक्शा बनाया और तामीर करवाया यह पैसा सरकार ने दिया सरकार से पैसा पास करने और टोंक में नाज़िम साहब के साथ मेहनत करने टोंक में पुल निर्माण की मशीनरी लाने में अंग्रेज़ एजेंट फ़्रेज़र ने बहुत साथ दिया यही कारन रहा की ब्रीज़ का नाम सआदत ब्रीज़ न रख कर नवाब साहब ने उसका नाम फ़्रेज़र ब्रीज़ रखा सआदत अस्पताल पहले सुभाष बज़्ज़र स्थित दरबार स्कूल में था वहाँ उस समय डाक्टर शेख मोहम्मद था जो विभाजन में पाकिस्तान चले गए इसके बाद सआदत अस्पताल में अग्रीज़ मेम आयेथी और फिर डॉक्टर दिसई साहब इनके बाद डॉक्टर बेनी साहब आये नाज़िम साहब जब दिल्ली क्लॉक लेने गए थी तब उनके खरोच लगाई थी और वो आगे चल कर नासूर बन गई और 1939 में आप का इंतेक़ाल होगया और 1939 के बाद टोंक में कोई इमारत भी नही बानी

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