नई दिल्ली: अरुण जेटली ने शनिवार को एनडीए सरकार का पहला पूर्ण बजट
पेश किया। जानकार मानते हैं कि बजट में आम आदमी के लिए कुछ भी खास नहीं
है, हालांकि सरकार ने गरीबों के करीब दिखने की कोशिश की है। इसके अलावा,
कॉरपोरेट को भी राहत देने की कोशिश की गई है। बजट पर राजनीतिक दलों से लेकर
एक्सपर्ट्स तक की राय बंटी हुई है। फायनेंस और अर्थव्यवस्था से जुड़े छह
एक्सपर्ट्स ने अपनी राय हमसे शेयर की है। पढ़ें...
यशवंत सिन्हा (पूर्व वित्त मंत्री और बीजेपी नेता)
भारत जैसे देश में बजट बनाना जटिल प्रक्रिया होती है, इसलिए इसे जांचने के मानदंड कई होते हैं। मेरे लिए तो आंकड़ों का गणित सबसे पहले हैं। प्रधानमंत्री व वित्त मंत्री के बयान देखकर यह अपेक्षा थी कि वित्तीय घाटे का लक्ष्य प्रमुख होगा। हालांकि, वित्त मंत्री ने इसे अगले दो से तीन साल तक फैला दिया है। ऐसे में अगले साल तक वित्तीय घाटा 20 बेसिस पॉइंट और राजस्व घाटा 10 बेसिस पॉइंट से ही कम होगा। वित्तीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन अधिनियम के लेखक के रूप में मुझे थोड़ी निराशा हुई है।
भारत जैसे देश में बजट बनाना जटिल प्रक्रिया होती है, इसलिए इसे जांचने के मानदंड कई होते हैं। मेरे लिए तो आंकड़ों का गणित सबसे पहले हैं। प्रधानमंत्री व वित्त मंत्री के बयान देखकर यह अपेक्षा थी कि वित्तीय घाटे का लक्ष्य प्रमुख होगा। हालांकि, वित्त मंत्री ने इसे अगले दो से तीन साल तक फैला दिया है। ऐसे में अगले साल तक वित्तीय घाटा 20 बेसिस पॉइंट और राजस्व घाटा 10 बेसिस पॉइंट से ही कम होगा। वित्तीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन अधिनियम के लेखक के रूप में मुझे थोड़ी निराशा हुई है।
जहां तक टैक्स से पैसा जुटाने की बात है, वित्त मंत्री ने ज्यादा साहस
नहीं दिखाया है। बजट अनुमानों को पुनरीक्षित अनुमानों तक ही सीमित रखा गया
है, लेकिन खर्च के मोर्चे पर कुछ रोचक आंकड़े दिखाई देते हैं। वित्त मंत्री
ने केंद्रीय करों में राज्यों का हिस्सा 32 से बढ़ाकर 42 फीसदी करने को कहा
था, जिसे चतुराई से मैनेज किया गया है। राज्यों का हिस्सा अब से लेकर अगले
साल तक 1.36 लाख करोड़ बढ़ गया है। इसी के साथ राज्यों को केंद्र से मिलने
वाली आयोजना मदद 3,38,000 करोड़ से घटकर 2,05,000 करोड़ कर दी गई है है। मोटे
तौर पर 1,34,000 करोड़ की कमी। इस तरह राज्यों को दिए अतिरिक्त संसाधन
2014-15 तक 64,000 करोड़ रहेंगे। खर्च के मोर्चे पर मुझे अपेक्षा थी कि
वित्त मंत्री खर्च प्रबंधन आयोग की रिपोर्ट, खाद्य प्रबंधन पर शांताकुमार
कमेटी की रिपोर्ट और केंद्रीय व केंद्र द्वारा आयोजित योजनाओं को तर्कसंगत
बनाने पर तवज्जों देंगे, पर उसके लिए हमें इंतजार करना होगा।
बजट का दूसरा पहलू यह होता है कि इसमें वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए
क्या है? इस बजट में ऐसी बहुत-सी बातें हैं। आधारभूत ढांचे के विकास पर
काफी जोर दिया गया है। 70,000 करोड़ रुपए का आवंटन, सालाना 20,000 करोड़ की
राष्ट्रीय निवेश व आधारभूत ढांचा निधि, रेल, रोड और सिंचाई क्षेत्र के लिए
कर मुक्त बांड, पीपीपी मोड को पुनर्जीवन, नई कंपनियों को मदद देने के लिए
इंक्यूबेशन सेंटर, बंदरगाहों का कॉर्पोरेटाइजेशन, अटल इनोवेशन मिशन, आईटी
इंडस्ट्री को रियायतें, बिजनेस करने में आसानी के उपाय, सोने संबंधी उपायों
से मिलने वाले संसाधन और कौशल विकास कार्यक्रमों से इस क्षेत्र को वह
प्रोत्साहन मिलेगा, जिसकी उसे लंबे समय से दरकार थी। हालांकि, काश वित्त
मंत्री आर्थिक सर्वेक्षण में उल्लेखित आधारभूत ढांचे संबंधी अटके पड़े
प्रोजेक्ट पर कुछ कहते। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना को सिर्फ 5,300
करोड़ रुपए की राशि दिए जाने से भी मुझे थोड़ी निराशा हुई है। यह खेल बदलने
वाला विचार है। इसे ज्यादा ध्यान व अधिक आवंटन दिए जाने की जरूरत थी।
तीसरा पहलू अाजीविका से जुड़ा है। मनरेगा में आमूल सुधार किए बिना, खासतौर पर लोकसभा में इसे लेकर प्रधानमंत्री के बयान के बाद इसे आवंटन देने का कुछ मतलब नहीं है। बेशक, कौशल विकास और आर्थिक वृद्धि से बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा होगा। अब जहां तक जीवन की गुणवत्ता का सवाल है तो बजट में 2022 के विज़न का समावेश किया गया है। बेहतर होता कि 2015-16 का अलग से उल्लेख किया जाता। दूर के लक्ष्य हमेशा ही कम विश्वसनीय होता है। सामाजिक क्षेत्र के मोर्चे पर बजट बहुत मजबूत है और यह जन-धन से जन सुरक्षा पर होता हुआ सभी भारतीयों के लिए काम करने वाले सामाजिक सुरक्षा सिस्टम की बात करता है।
करों के संबंध में आयकर की दरों में कोई बदलाव ने होना निराशाजनक है।
आयकर छूट की सीमा को ढाई लाख से बढ़ाकर तीन लाख कर देते, तो बेहतर होता। यह
रियायत कॉर्पोरेट टैक्स में जो 5 फीसदी की कमी की गई है, उसे लोगों में
स्वीकार्य बना देती। आवास क्षेत्र को और बढ़ावा मिलता, यदि ब्याज पर आयकर
रियायत सीमा को दो लाख से बढ़ाकर ढाई लाख कर दिया जाता।
काले धन पर लगाम लगाने के उपायों की लंबे समय से जरूरत थी। उनका
स्वागत है। मुझे अब भी लगता है कि प्रत्यक्ष कर संहिता की जरूरत है और इसे
खारिज नहीं किया जाना चाहिए।
वित्त मंत्री ने 1 अप्रैल 2016 से सामान व सेवा कर संहिता (जीएसटी) को
लागू करने का चुनौतीपूर्ण लक्ष्य ले लिया है। इसके लिए केंद्र के साथ
राज्य सरकारों को भी तेजी दिखानी होगी पर सेवा कर व केंद्रीय उत्पाद शुल्क
में भिन्न दरें बहुत सहायक नहीं हैं। कुल-मिलाकर रेल बजट की तरह अाम बजट भी विज़न डाक्यूमेंट है। कमाल तो तब होगा, जब इस विज़न में जान फूंककर उसे अमल में लाया जाएगा।
ऐसा क्यों
कर में राहत से क्या होता?
- व्यक्तिगत आयकर छूट सीमा बढ़ने से कॉर्पोरेट टैक्स में 5 फीसदी की कमी लोगों को स्वीकार हो जाती।
कर में राहत से क्या होता?
- व्यक्तिगत आयकर छूट सीमा बढ़ने से कॉर्पोरेट टैक्स में 5 फीसदी की कमी लोगों को स्वीकार हो जाती।
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