आपका-अख्तर खान

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04 मार्च 2015

यह शक शुबह

यह शक शुबह
अगर, मगर, लेकिन ,परन्तु
वायदे ,,बहाने ,,नखरे ,,अंदाज़ ,
तुम्हारा इतराना ,,इठलाना
वायदों से मुकरना
बेवजह यूँ ही झगड़ना
कभी जान से भी ज़्यादा
हम पर टूट कर बिखरना
कभी तड़पा तड़पा कर हमे बिखेरना
कभी रूठ जाना
कभी मान जाना
कभी हमे समझाना
कभी हमे मनाना
कभी हमारे पास आना
कभी हमसे दूर जाना
तुम्हारा हर अंदाज़ प्यारा सा लगता है
तुम्हारा प्यार लाजवाब सा लगता है
देखो तुम्हारी बद्तमीज़िया
तुम्हारी बेहूदगियाँ खतरनाक है फिर भी
तुम्हारे बिना सब कुछ अधूरा सबकुछ सूना लगता है ,
लोग पूंछते है कोन है वोह
में कहता हूँ तुम हो तुम हो ,,,,,अख्तर

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