नई दिल्ली. 14 फरवरी को रामलीला मैदान में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविंद केजरीवाल
और उनके डिप्टी मनीष सिसौदिया बुधवार को गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मिले।
आप नेताओं ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने में मदद करने का आग्रह
किया। केजरीवाल और सिसौदिया बुधवार को ही राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और शहरी
विकास मंत्री वेंकैया नायडू से भी मिले। दूसरी तरफ, केजरीवाल ने दिल्ली
पुलिस की जेड प्लस सिक्युरिटी लेने से इनकार कर दिया है। प्रोटोकॉल के तहत
सीएम को तीन दर्जन सुरक्षा कर्मचारी के अलावा पायलट और एस्कार्ट वाहन मिलते
हैं। केजरीवाल ने कथित तौर पर सिक्युरिटी लेने से यह कहते हुए इनकार कर
दिया कि वह जनता के सीएम हैं और सुरक्षा की वजह से वह उनसे ठीक ढंग से मिल
नहीं पाएंगे। बता दें कि केजरीवाल ने पिछली बार भी सीएम बनने के बाद
सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया था। उस वक्त उन्होंने कहा था कि भगवान ही
उनकी सबसे बड़ी सुरक्षा है।
केंद्र से हो सकता है टकराव
गृहमंत्री से मिलने के बाद मनीष सिसौदिया ने कहा कि दिल्ली सरकार के
कई काम केंद्रीय गृह मंत्रालय के जरिए होते हैं, इसलिए राजनाथ से आश्वासन
मांगा गया कि वे इसमें सहयोग करें। इससे पहले केजरीवाल शहरी विकास मंत्री
वेंकैया नायडू से मिले और गुरुवार को वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
से भी मिलेंगे। वह मोदी को शपथ समारोह में आने का न्योता देंगे। बता दें
कि दिल्ली चूंकि पूर्ण राज्य नहीं है, इसलिए बतौर सीएम केजरीवाल को पीएम
मोदी के सहयोग की कदम-कदम पर जरूरत पड़ेगी। एक राज्य होते हुए भी दिल्ली के
पास अन्य पूर्ण राज्यों की तरह तमाम अधिकार नहीं हैं। नीतिगत मामलों से
लेकर भूमि, विधानसभा के कई मुद्दे केंद्र के अधीन होते हैं। यही नहीं
दिल्ली के निकाय मामलों पर भी पूरी तरह से केंद्र का नियंत्रण है। इन पांच
बड़े मुद्दों पर केंद्र ओर केजरीवाल सरकार के बीच टकराव के पूरे आसार हैं-
1. पुलिस
दिल्ली पुलिस पर केंद्र सरकार का कंट्रोल है। पिछली बार सीएम रहते हुए अरविंद केजरीवाल
ने कुछ पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई के लिए धरना-प्रदर्शन तक दिया था।
वह दिल्ली पुलिस दिल्ली सरकार के तहत किए जाने की मांग भी करते रहे हैं।
2. पानी
दिल्ली पानी के लिए पूरी तरह से हरियाणा पर निर्भर है। केंद्र और
हरियाणा में बीजेपी सरकार है। हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर नीति आयोग
की मीटिंग के चेता चुके हैं कि दिल्ली को अपने पानी का इंतजाम खुद करना
पड़ेगा। हालांकि हरियाणा ने दिल्ली के लिए 95 एमजीडी पानी छोड़ा है। यमुना
में आए दिन हरियाणा की ओर से आने वाली गंदगी भी टकराहट का मुद्दा रहेगा।
3. जमीन
दिल्ली की जमीन डीडीए के तहत आती है और डीडीए केंद्रीय शहरी विकास
मंत्रालय के तहत है। आम आदमी पार्टी ने घोषणापत्र में दिल्ली में 20 नए
कॉलेज खोलने का वादा किया है। इसके लिए जमीन डीडीए से ही लेनी पड़ेगी। कोई
दूसरा प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए भी जमीन के लिए केंद्र पर निर्भर रहना
होगा।
4. पूर्ण राज्य का दर्जा और जनलोकपाल बिल
केजरीवाल घोषणापत्र में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने का
वादा कर चुके हैं। वह दिल्ली विधानसभा से इस संबंध में प्रस्ताव पास करके
केंद्र को भेज सकते हैं, लेकिन केंद्र के लेवल पर टकराव तय है। वैसे, भी
दोनों सदनों में इस प्रस्ताव को दो-तिहाई बहुमत से पास कराने की जरूरत
होगी, लेकिन केंद्र सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है।
जनलोकपाल बिल के मामले में भी ऐसी ही स्थिति बनेगी। केंद्र की
मंजूरी के बिना विधानसभा में पारित बिल पास नहीं हो सकेगा। ऐसे में टकराव
की आशंका बनी ही रहेगी।
पिछली बार विधानसभा में ही जनलोकपाल बिल पारित नहीं हो सका था, जिसके
बाद 49 दिन पुराने मुख्यमंत्री (केजरीवाल) ने इस्तीफा दे दिया था। इस बार
विधानसभा में बिल पारित कराने में कोई मुश्किल नहीं आएगी। लेकिन केंद्र के
साथ टकराव तय है।
अवैध कॉलोनियों को नियमित करने, बस्ती इलाकों के विकास, नीतियों में
सुधार और कानून व्यवस्था आदि को लेकर केंद्र सरकार की जरूरत पड़ेगी। अगर इन
मामलों में केंद्र सरकार का पूर्ण सहयोग नहीं मिला तो केजरीवाल के लिए
अपने मन मुताबिक सरकार चलाने में दिक्कत होगी।
इन बड़े मुद्दों के अलावा नौकरशाही में बदलाव के कारण भी केंद्र और
दिल्ली सरकार के बीच टक्कर की स्थिति बन सकती है। बता दें कि दिल्ली में
लेफ्टिनेंट गवर्नर नीतियों और भूमि से जुड़े सभी मामलों में केंद्र सरकार
का प्रतिनिधि होता है।
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