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14 फ़रवरी 2015

एक सूरज जिसे मेने बहादुर समझा था

एक सूरज जिसे मेने बहादुर समझा था ,,लेकिन देखा एक बादल से डर कर छुप गया ,,कई दिनों तक जब तक बादलों का कहर रहा डरा ,,डरा ,,सहमा सहमा रहा ,,सुबह निकला ,,,शाम को चलता हो गया ,,,,,,,,,,,,,,अकेले में देखा तो गर्मियों की दोपहर में कहर बरपाया ,,,,,और यूँ देखो तो बादलों से डर कर छुपता फायर ,,,ऐसे सूरज को जो मेरे खुदा के रहमो कर्म पर है ,,में क्यों सलाम करूँ ,,मेरा समर्पण मेरे उस खुदा के लिए जिसने सूरज को बनाया ,,जिसने सूरज को बादलों से डरना सिखाया ,,जिस सूरज को मेरे अल्लाह के नबी मूसा अ स ने आग का गोला समझ कर चबाया ,,ऐसे सूरज का क्या ,,,,,,,यह सूरज तीन सो पैसठ दिन में सो दिन भी तो हमारा साथ नहीं देता है ,,बारिश में डर के मारे निकलता ही नहीं सुबह निकला तो शाम को चलता हो जाता है ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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