बेगूसराय. इरादे
मजबूत हों तो तालाब से भी मोती निकाले जा सकते हैं। तेतरी के किसान जयशंकर
कुमार बूढ़ी गंडक के मीठे जल से सीप निकालकर मोती का उत्पादन तालाब के
माध्यम से कर लाखों रुपए कमा रहे हैं। मुंबई के पर्ल वैज्ञानिक अशोक
मलवानी के निर्देशन में मोती का उत्पादन किसानों को आकर्षित कर रहा है।
बड़े पैमाने पर नहीं होने के कारण व्यापारी इस तरह का उत्पादन आकर्षित
नहीं हो रहे हैं। किसान जयशंकर कुमार का कहना है कि मोती उत्पादन के लिए
मीठे जल वाले क्षेत्र के किसानों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, तभी मांग
के अनुरूप मोती का उत्पादन होगा और तब यहां मोती का बाजार विकसित हो
सकेगा। डेढ़ एकड़ का तालाब इंटिग्रेटेड पर्ल फार्मिंग का बेजोड़ नमूना है।
तालाब के मेड़ पर सागवान, केला अखरोट के लगे पेड़ से झड़े सूखे पत्ते
पेन्टान (मछली का भोजन) बन जाते हैं। तालाब के चारों ओर की जमीन पर वर्मी
कंपोस्ट का उत्पादन, गो पालन व बकरी पालन किया जाता है। जय शंकर कुमार
बेगूसराय जिले के डंडारी ब्लॉक में तेतरी गांव के निवासी हैं। गुजरात के
छोटा उदयपुर क्षेत्र में आदिवासी अकादमी, तेजगढ़ में रिसर्च स्कॉलर के रूप
में काम करने के दौरान ‘विमुक्त घुमंतु जनजाति’ के साथ काम करना शुरू किया।
इस अवधि के दौरान ही उन्हें अपने गांव में इस तरह का कार्य करने की
प्रेरणा मिली।
कैसे बनता है मोती
जिंदा सीप का मुंह खोल कर विभिन्न आकृति के कैल्शियम कार्बोनेट के
टुकड़े सीप के अंदर डाल दिए जाते हैं। टुकड़ा डालने की प्रक्रिया के दौरान
सीप से नैक्रे नामक केमिकल का स्राव होता है, जो सीप में डाली गयी आकृति पर
जम जाता जाता है। सीप जितने दिन जिंदा रहता है, मोती उतना ही बड़ा होता
है। ताजा पानी में सीपों की पालन देखभाल के चरण के बाद इन सीपों को तालाब
में डाल दिया है।
कहते हैं मत्स्य वैज्ञानिक
मत्स्य वैज्ञानिक डाॅ. स्वप्ना चौधरी ने बताया कि इंटिग्रेटेड
फार्मिंग का यह जगह बेजोड़ नमूना है। कतला, रेहु आदि मछली बहते पानी में
ब्रीडिंग करती हैं, लेकिन यहां ठहरे पानी में ब्रीडिंग मछली वैज्ञानिकों के
लिए शोध का विषय है। किसानों को जागरूक कर मीठे जल वाले क्षेत्र में मोती
का उत्पादन इस क्षेत्र के लिए क्रांति लाएगा।
कितनी है लागत
निर्माण की पूरी प्रक्रिया में 400 से 500 रुपए लगते हैं, जबकि बाजार में एक मोती की कीमत लगभग 3500 रुपए होती है।
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