सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर जनता की
मदद के लिए कानून व्यवस्था लागू करने वाली एजेंसियों के पेज पर अपनी शिकायत
के लिये टिप्पणी करना अपराध नहीं है.
न्यायमूर्ति वी गोपाल गौडा और न्यायमूर्ति आर बानुमति की खंडपीठ ने इस व्यवस्था के साथ ही बेंगलुरू के एक दंपति को राहत प्रदान की. इस दंपति ने एक पुलिस अधिकारी के दुव्यर्वहार के बारे में फेसबुक पर बेंगलुरु यातायात पुलिस के पेज पर अपनी टिप्पणी द्वारा शिकायत की थी. पुलिस ने इसी आधार पर दंपति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी।
न्यायमूर्ति वी गोपाल गौडा और न्यायमूर्ति आर बानुमति की खंडपीठ ने इस व्यवस्था के साथ ही बेंगलुरू के एक दंपति को राहत प्रदान की. इस दंपति ने एक पुलिस अधिकारी के दुव्यर्वहार के बारे में फेसबुक पर बेंगलुरु यातायात पुलिस के पेज पर अपनी टिप्पणी द्वारा शिकायत की थी. पुलिस ने इसी आधार पर दंपति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी।
न्यायालय ने कहा कि यातायात पुलिस ने फेसबुक पर जनता के लिये ही पेज बनाया
था. न्यायालय ने कहा कि हमारी सुवि़चारित राय है कि इस दंपति ने यह सोच कर
आन लाइन टिप्पणी की कि उनका यह कृत्य स्वीकृति सीमा के भीतर ही है.
न्यायालय ने इसके साथ ही कर्नाटक उच्च न्यायालय का फैसला निरस्त कर दिया.
उच्च न्यायालय ने इस दंपति के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी निरस्त करने की उनकी
याचिका खारिज कर दी थी.
इस मामले में माणिक तनेजा और उनकी पत्नी साक्षी जावा से 13 जून 2013 को एक सडक दुर्घटना हो गयी थी जिसमें आटो रिक्शा में जा रहा एक व्यक्ति जख्मी हो गया. इस व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती कराया गया और मामला परस्पर सहमति से सुलझा लिया गया. लेकिन दुर्घटनास्थल के पास ही मौजूद एक सिपाही ने दंपति को अपने वरिष्ठ अधिकारी से मिलने का निर्देश दिया.
यह दंपति जब इस अधिकारी से मिलने गये तो उन्होंने उनके साथ दुर्व्यवहार किया और धमकी दी. इस अधिकारी के आचरण से आहत दंपति ने इस संबंध में बेंगलुरू यातायात पुलिस के फेसबुक पेज पर अपनी टिप्पणी पोस्ट की और इस घटना के बारे में ई मेल भी भेजी.
फेसबुक कॉमेंट से नाराज पुलिस अफसर ने इस दंपत्ति पर दुर्व्यवहार और ड्यूटी निभाने में अड़चन डालने का आरोप लगाया लेकिन अदालत ने इस आरोप को खारिज कर दिया. दंपत्ति ने यही दलील दी कि बेंगलुरु ट्रैफिक पुलिस का फेसबुक पेज एक पब्लिक फोरम है जहां अपनी परेशानियां जाहिर करना नागरिकों का अधिकार है
पुलिस की दलील ने असहमत सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि बिना किसी मंशा के अपने जज्बात जाहिर करना आपराधिक आरोप लगाने के लिए नाकाफी वजह है. आरोपी ने इस पेज पर कॉमेंट करके आईपीसी की धारा 503 का उल्लंघन नहीं किया.
इस मामले में माणिक तनेजा और उनकी पत्नी साक्षी जावा से 13 जून 2013 को एक सडक दुर्घटना हो गयी थी जिसमें आटो रिक्शा में जा रहा एक व्यक्ति जख्मी हो गया. इस व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती कराया गया और मामला परस्पर सहमति से सुलझा लिया गया. लेकिन दुर्घटनास्थल के पास ही मौजूद एक सिपाही ने दंपति को अपने वरिष्ठ अधिकारी से मिलने का निर्देश दिया.
यह दंपति जब इस अधिकारी से मिलने गये तो उन्होंने उनके साथ दुर्व्यवहार किया और धमकी दी. इस अधिकारी के आचरण से आहत दंपति ने इस संबंध में बेंगलुरू यातायात पुलिस के फेसबुक पेज पर अपनी टिप्पणी पोस्ट की और इस घटना के बारे में ई मेल भी भेजी.
फेसबुक कॉमेंट से नाराज पुलिस अफसर ने इस दंपत्ति पर दुर्व्यवहार और ड्यूटी निभाने में अड़चन डालने का आरोप लगाया लेकिन अदालत ने इस आरोप को खारिज कर दिया. दंपत्ति ने यही दलील दी कि बेंगलुरु ट्रैफिक पुलिस का फेसबुक पेज एक पब्लिक फोरम है जहां अपनी परेशानियां जाहिर करना नागरिकों का अधिकार है
पुलिस की दलील ने असहमत सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि बिना किसी मंशा के अपने जज्बात जाहिर करना आपराधिक आरोप लगाने के लिए नाकाफी वजह है. आरोपी ने इस पेज पर कॉमेंट करके आईपीसी की धारा 503 का उल्लंघन नहीं किया.
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