आपका-अख्तर खान

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03 जनवरी 2015

समय की बहती नदी के

" समय की बहती नदी के
के किनारे बैठ कर
मैंने लिखी शुभ कामना तुमको
पानी में उंगलीयों से कई बार,
दिए भी तैराए थे मेने
भाग्यवश भागीरथी मिल जाएँ तुमको पूछ लेना,
मैं विकल्पों की विवशता का वास्ता क्या दूं ?
मैं तो संकल्पों का सिपाही,
समय की बहती नदी के किनारे बैठ कर
मैंने लिखी शुभ कामना तुमको --
सूर्य सा दहके तुम्हारा साल,
शौर्य से दहके तुम्हारा भाल,
चिड़ियों सा चहके तुम्हारा घोंसला,
फूल सा महके तुम्हारा प्यार,
और बढ़ता जाए तेरा हौसला . " -- राजीव चतुर्वेदी,,,,,,,,,,,,,,,, दोस्तों में गदगद हूँ मेरे भाई ,,,बहतरीन लेखक ,,,विख्यात साहित्यकार ,,अल्फ़ाज़ों के जादूगर भाई राजीव जी ने मुझे याद रखा ,,,शुक्रिया राजीव भाई शुक्रिया ,,,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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