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25 जनवरी 2015

मोदी अच्छे इंसान और दूरदृष्टि वाले नेता: ,,,,चीफ जस्टिस भारत

मोदी अच्छे इंसान और दूरदृष्टि वाले नेता: चीफ जस्टिस भारत के सर्वोच्च न्यायालय के एक जज जिसकी ज़िम्मेदारी पुरे देश की न्यायिक व्यवस्था मज़बूत और सुदृढ़ करने की है ,,जो अभी अपने पद पर है ,,जिनके सामने कभी भी किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई भी सुनवाई आ सकती है ,,,,, क्या ऐसे व्यक्ति के मामले में सार्वजनिक रूप से प्रशंसा वाली टिप्पणी करने का हक़ रखते है जिसके खिलाफ गुजरात के दंगे के मामले में पूर्व सांसद जाफरी की पत्नी ने कार्यवाही कर रखी है और उसकी कोई भी अर्ज़ी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए आ सकती है ,,आप अपनी राय न्यायिक व्यवस्था और न्यायिक सुप्रीमों के आदर्श और कर्तव्य के निर्धारण के हिसाब से दीजिये ,,प्लीज़ ,,,,,,जस्टिस की राय निचे लिखी है ,,,,
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए इस तारीफ के काफी मायने हो सकते हैं। शुक्रवार को देश के चीफ जस्टिस एच एल दत्तू ने उन्हें एक अच्छा नेता, अच्छा इंसान और दूरदृष्टि वाला शख्स करार दिया। प्रधानमंत्री से अब तक चार बार मिल चुके चीफ जस्टिस ने उनके बारे में यह राय पत्रकारों से बातचीत के दौर जताई। उन्होंने कहा कि न्यायपालिक और सरकार के बीच संबंध काफी अच्छे हैं।
यह प्रशंसा मोदी के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 2002 के गुजरात दंगों के बाद शिकायतों के निपटारे में उनके नेतृत्व वाली प्रदेश सरकार और वह खुद सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के केंद्र में रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने ज़ाकिया जाफरी की शिकायत पर जांच के लिए एसआईटी का गठन किया था। जब एसआईटी ने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी तो सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि जांच टीम की रिपोर्ट की पड़ताल करे।
चार महीने पहले देश के चीफ जस्टिस का पदभार संभालने वाले दत्तू ने कहा कि उनके कार्यकाल में सरकार और न्यायपालिका के बीच संबंध काफी अच्छा रहा है। उन्होंने कहा, 'अभी तक सरकार ने मेरे किसी प्रस्ताव को खारिज नहीं किया। न्यायपालिका की मांगों के लेकर भी सरकार रवैया काफी सकारात्मक रहता है।'
चीफ जस्टिस की यह राय इस लिहाज से भी अहम है कि मोदी सरकार द्वारा हाई कोर्ट और सर्वोच्च अदालत में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम को खत्म करके नैशनल जूडिशल अपॉइंटमेंट्स कमिशन बनाने और सिफारिश के बावजूद गोपाल सुब्रमण्यम को सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर नियुक्ति को हरी झंडी न दिखाने के बाद यह धारणा बनी थी कि इस सरकार और न्यायपालिका में संबंध सामान्य नहीं रहेगा। कॉलेजियम सिस्टम को खत्म करने से जजों की नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट का एकाधिकार खत्म हो गया है।
जस्टिस दत्तू का कहना है कि वह उस बात में विश्वास रखते हैं जो तत्कालीन चीफ जस्टिस वाई के सभरवाल ने 2006 में बिहार में राष्ट्रपति शासन को खारिज करते हुए कही थी। जस्टिस सभरवाल ने कहा था कि कार्यपालिक और न्यायपालिक के बीच थोड़ी-बहुत टेंशन सिस्टम के लिए अच्छा है। चीफ जस्टिस ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान जोर देकर कहा, 'न्यायपालिक और कार्यपालिक शासन की दो अलग-अलग परिधियों में काम करते हैं, लेकिन प्रशासनिक पहलू पर समन्वय जरूरी है। खासकर न्यायपालिका के लिए ढांचागत सुविधाओं और लंबित मुकदमों से निपटने के लिए नए पदों के सृजन जैसी मांगों के पूरा होने से नागरिकों को फायदा होगा।'
नैशनल जूडिशल अपॉइंटमेंट्स कमिशन के बारे में पूछे जाने पर जस्टिस दत्तू ने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, लेकिन यह सफाई जरूर दी कि जजों की नियुक्ति के लिए तंत्र विकसित होने से न्यायपालिका कतई अपसेट नहीं है। उन्होंने कहा कि कार्यपालिका ने अपना काम किया है और हम अपना काम कर रहे हैं।
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