लखनऊ/अयोध्या. अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले
के मुख्य मुद्दई हाशिम अंसारी ने मंगलवार को बयान देकर सबको चौंका दिया
है। बाबरी मस्जिद मुद्दे के राजनीतिकरण से नाराज उन्होंने कहा कि अब
रामलला को वह आजाद देखना चाहते हैं। वह अब किसी भी कीमत पर वे बाबरी
मस्जिद के मुकदमे की पैरवी नहीं करेंगे। छह दिसंबर को काला दिवस जैसे
किसी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि रामलला तिरपाल
में रहें और लोग महलों में। लोग लड्डू खाएं और रामलला इलायची दाना, यह
नहीं हो सकता।
हाशिम ने कहा कि बाबरी मस्जिद की पैरवी के लिए एक्शन कमेटी बनी थी,
लेकिन आजम खान उसके कन्वेनर (संयोजक) बना दिए गए। अब सियासी फायदा उठाने
के लिए वे मुलायम के साथ चले गए। एक्शन कमेटी के जितने लीडर थे, उनको पीछे
छोड़ दिया। हाशिम ने कहा, "मुकदमा हम लड़ें और राजनीति का फायदा आजम खान
उठाएं। इसलिए मैं अब बाबरी मस्जिद मुकदमे की पैरवी नहीं करूंगा। इसकी पैरवी
आजम खान करें।"
बाबरी एक्शन कमिटी के संयोजक जफरयाब जिलानी का कहना है कि वह हाशिम
अंसारी मना लेंगे। इसके अलावा उनके द्वारा पैराकारी नहीं करने से भी मुकदमे
पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इस मुकदमे में छह वादी और भी मौजूद हैं। इसमें
सुन्नी वक्फ बोर्ड भी वादी है। यह एक रिप्रेजेन्टिव मुकदमा है।
इस मामले पर यूपी के राज्यपाल रामनाईक का कहना है कि इस विषय पर कोई
किसी प्रकार की राजनीतिक टिप्पणी नहीं करेंगे। उन्होंने इस विषय में जो कहा
है जब वह पूरा होगा तो अच्छा ही है। राम मंदिर के बारे में जो भी समस्याएं
या कठिनाईयां है, वह इस प्रकार से खत्म होगी तो यह देश के लिए निश्चित तौर
पर अच्छा रहेगा।
उन्होंने साफ कहा, "जितने भी नेता हैं सब कोठियों में रह रहे हैं और
रामलला तिरपाल में रह रहे हैं। मैं रामलला को तिरपाल में देखना नहीं चाहता।
खुद तो 100 रुपए किलो की बढ़िया मिठाई खा रहे हैं और रामलला इलायची दाना खा
रहे हैं, यह नहीं हो होगा। अब हम रामलला को हर कीमत पर आजाद देखना चाहते
हैं। अब मुकदमे की कार्रवाई आजम खान करें, मुझको नहीं करना।
हाशिम अंसारी यही नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा कि आजम खान चित्रकूट
में छह मंदिरों का दर्शन कर सकते हैं, तो अयोध्या दर्शन करने क्यों नहीं
आते। उन्होंने कहा, "बाबरी मस्जिद हो या राम जन्मभूमि, यह राजनीति का
अखाड़ा है। मैं हिंदुओं या मुसलमानों को बेवकूफ बनाना नहीं चाहता। मेरे हक़
में फैसला हुआ है। अब हम किसी कीमत पर बाबरी मस्जिद मुकदमे की पैरवी नहीं
करेंगे। छह दिसंबर को मुझे कोई कार्यक्रम नहीं करना है, बल्कि अपना दरवाजा
बंद करके अंदर रहना है।"
नेता मस्जिद का नाम लेकर अपनी रोटियां सेंक रहे हैं
हाशिम अंसारी से पूछा कि आपने जो सुलह-समझौते
की कोशिश की थी, उसके बारे में क्या कहेंगे? जवाब में उन्होंने कहा कि
जब कोशिश की थी, उसी समय हिंदू महासभा सुप्रीम कोर्ट चली गई। परिषद के
अध्यक्ष बाबा ज्ञान दास ने पूरी कोशिश की थी कि हिंदुओं और मुसलमानों को
इकट्ठा करके मामले को सुलझाया जाए। उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद का
मुकदमा 1950 से चल रहा है। सारे नेता चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, मस्जिद
का नाम लेकर अपनी रोटियां सेंक रहे हैं।
हाशिम अंसारी अयोध्या के उन कुछ चुनिंदा बचे हुए लोगों में से हैं, जो
लगातार 60 वर्षों से अपने धर्म और बाबरी मस्जिद के लिए संविधान और क़ानून
के दायरे में रहते हुए अदालती लड़ाई लड़ रहे हैं। स्थानीय हिंदू साधु-संतों
से उनके रिश्ते कभी ख़राब नहीं हुए।
हाशिम का परिवार कई पीढ़ियों से अयोध्या में रह रहा है। वे 1921 में
पैदा हुए। 11 साल की उम्र में यानी वर्ष 1932 में उनके पिता का देहांत हो
गया। दर्जा दो तक पढाई की। फिर सिलाई यानी दर्जी का काम करने लगे। यहीं
पड़ोस में फैजाबाद में उनकी शादी हुई। उनके एक बेटा और एक बेटी है। छह
दिसंबर, 1992 के बलवे में बाहर से आए दंगाइयों ने उनका घर जला दिया, लेकिन
अयोध्या के हिंदुओं ने उन्हें और उनके परिवार को बचाया।
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