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11 दिसंबर 2014

इंदिरा को नहीं थी कानून की जानकारी, रे के कहने पर लगाई थी इमरजेंसी: प्रणव मुखर्जी

इंदिरा को नहीं थी कानून की जानकारी, रे के कहने पर लगाई थी इमरजेंसी: प्रणव मुखर्जी
नई दिल्ली. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब 'द ड्रैमेटिक डिकेड : द इंदिरा गांधी इयर्स' में लिखा है कि इमरजेंसी का निर्णय बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर गौतम के कहने पर लिया था, खुद इंदिरा को संवैधानिक प्रावधानों की जानकारी नहीं थी। उन्होंने लिखा है ''इमरजेंसी शायद 'टालने योग्य घटना' थी और इंदिरा गांधी को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी क्योंकि उस दौरान मौलिक अधिकार एवं राजनीतिक गतिविधि के निलंबन, बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां और प्रेस सेंसरशिप का काफी प्रतिकूल असर पड़ा था।''
  
इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी सरकार में मंत्री रहे मुखर्जी ने जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बनने वाले तत्कालीन विपक्ष को भी नहीं बख्शा और उनके आंदोलन को 'दिशाहीन' बताया है। मुखर्जी ने अपनी किताब में आजादी के बाद भारत के इतिहास के सबसे बड़े उथल-पुथल भरे समय का जिक्र किया है। उनकी किताब हाल ही में जारी हुई है। किताब में मुखर्जी ने लिखा है, ''यह बड़ी विडंबना थी कि वह पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री राय ही थे जो शाह आयोग के समक्ष इमरजेंसी लगाने में अपनी भूमिका से पलट गए थे।'' बता दें इमरजेंसी के दौरान की ज्यादतियों की इस आयोग ने जांच की थी।
 
इंदिरा ने खुद बताया था, उन्हें नहीं पता थे कानून
उन्होंने लिखा है, ‘'इंदिरा गांधी ने मुझसे बाद में कहा था कि अंदरूनी गड़बड़ी के आधार पर इमरजेंसी की घोषणा की अनुमति देने वाले संवैधानिक प्रावधानों से तो वह वाकिफ भी नहीं थीं खासकर ऐसी स्थिति में जब 1971 के भारत-पाकिस्तान लड़ाई के फलस्वरूप इमरजेंसी लगाई जा चुकी थी।’’ मुखर्जी ने यह भी लिखा है कि ''यह दिलचस्प पर आश्चर्यजनक बात नहीं थी कि जब इमरजेंसी घोषित किया गया था तब कई लोगों ने दावा कि उसके सूत्रधार तो वे ही हैं. लेकिन यह भी आश्चर्य की बात नहीं थी कि ये ही लोग शाह आयोग के समक्ष पलट गए।''
 
इंदिरा से बोले रे-आप अच्छी लग रही हैं
मुखर्जी ने लिखा है, ‘‘न केवल उन्होंने अपनी भूमिका से इनकार किया बल्कि उन्होंने खुद को निर्दोष बताते हुए सारा दोष इंदिरा गांधी पर मढ़ दिया। सिद्धार्थ बाबू कोई अपवाद नहीं थे। शाह आयोग के सामने पेशी के दौरान आयोग के हाल में वह इंदिरा गांधी के पास गए जो गहरी लाल साड़ी में थीं और उनसे कहा, आज आप बहुत अच्छी लग रही हैं।’’ मुखर्जी के अनुसार, रूखे शब्दों में इंदिरा ने जवाब में कहा, "आपके प्रयास के बावजूद।"  
 
प्रणब दा की किताब में और क्या-
321 पन्नों में राष्ट्रपति द्वारा लिखी गई इस किताब में इमरजेंसी के अलावा बांग्लादेश मुक्ति, जेपी आंदोलन, 1977 के चुनाव में हार, कांग्रेस में विभाजन, 1980 में सत्ता में वापसी और उसके बाद के विभिन्न घटनाक्रमों पर भी कई अध्याय हैं। मुखर्जी की यह किताब सियासी हलकों में नया बवाल मचा सकती है। किताब बुकस्टोर्स में पहुंचने से 21 दिन पहले बिक्री के लिए जल्द ही ऑनलाइन उपलब्ध होगी। 
 
बता दें कि प्रणब मुखर्जी 2012 में राष्ट्रपति बने थे। वे देश के सबसे अनुभवी राजनेताओं में गिने जाते हैं और कांग्रेस सरकारों में उन्होंने वित्त, रक्षा और विदेश मंत्रालय संभालने का लंबा अनुभव है। वे विपक्ष के भी पसंदीदा हैं। गुरुवार को ही राष्ट्रपति का 79वां जन्मदिन भी था।राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को गुरुवार को अपना 79वें जन्मदिन मनाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सहित कई नेताओं ने उन्हें शुभकामनाएं दीं। इस मौके पर राष्ट्रपति भवन के स्टाफ ने एक कार्यक्रम भी आयोजित किया था, जिसमें प्रणब ने न सिर्फ केक काटा बल्कि राष्ट्रपति भवन स्टाफ के बच्चों को गिफ्ट भी दिए।

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