नई दिल्ली: सरकार ने आत्महत्या करने की कोशिश को अपराध की
श्रेणी से हटाने का फैसला किया है। यानी अब जान देने की कोशिश करने वालों
को जेल नहीं होगी। मोदी सरकार ने बुधवार को आईपीसी की धारा 309 को खत्म
करने का एलान किया। इस कानून के तहत जान देने की कोशिश करने वाले को 1 साल
तक की जेल और जुर्माने की सजा होती थी। सरकार ने बताया कि 18 राज्य और 4
केंद्र शासित प्रदेश इस फैसले के पक्ष में हैं।
कुछ दिन पहले गृहराज्य मंत्री किरण रिजिजू ने लोकसभा में बताया था कि लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि सेक्शन 309 को अपराध की श्रेणी से हटा दिया जाना चाहिए। कमीशन ने कहा था कि यह कानून मानवीय दृष्टिकोण से सही नहीं है। इस कानून को हटाने से आत्महत्या की कोशिश के बाद मानसिक प्रताड़ना झेल रहे लोगों को कानूनी अड़चनों में फंसकर अलग से परेशान नहीं होना पड़ेगा। रिजिजू के मुताबिक, होम मिनिस्ट्री सीआरपीसी और आईपीसी के कुछ और दूसरे कानूनों को भी खत्म करने पर विचार कर रही है। बता दें कि सुप्रीम के तत्कालीन जस्टिस मार्कंडेय काटजू और ज्ञान सुधा मिश्रा की बेंच ने भी संसद को सुझाव दिया था कि इस कानून को खत्म किया जाए। उन्होंने कहा था कि एक शख्स डिप्रेशन में आने के बाद आत्महत्या की कोशिश करता है, इसलिए उसे मदद की जरूरत है, न कि सजा की। जो लोग इस कानून को खत्म किए जाने का विरोध कर रहे थे, उनका तर्क था कि आत्महत्या एक अनैतिक काम है और इसे खत्म करने पर सुसाइड के मामलों में बढ़ोत्तरी हो सकती है।
कुछ दिन पहले गृहराज्य मंत्री किरण रिजिजू ने लोकसभा में बताया था कि लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि सेक्शन 309 को अपराध की श्रेणी से हटा दिया जाना चाहिए। कमीशन ने कहा था कि यह कानून मानवीय दृष्टिकोण से सही नहीं है। इस कानून को हटाने से आत्महत्या की कोशिश के बाद मानसिक प्रताड़ना झेल रहे लोगों को कानूनी अड़चनों में फंसकर अलग से परेशान नहीं होना पड़ेगा। रिजिजू के मुताबिक, होम मिनिस्ट्री सीआरपीसी और आईपीसी के कुछ और दूसरे कानूनों को भी खत्म करने पर विचार कर रही है। बता दें कि सुप्रीम के तत्कालीन जस्टिस मार्कंडेय काटजू और ज्ञान सुधा मिश्रा की बेंच ने भी संसद को सुझाव दिया था कि इस कानून को खत्म किया जाए। उन्होंने कहा था कि एक शख्स डिप्रेशन में आने के बाद आत्महत्या की कोशिश करता है, इसलिए उसे मदद की जरूरत है, न कि सजा की। जो लोग इस कानून को खत्म किए जाने का विरोध कर रहे थे, उनका तर्क था कि आत्महत्या एक अनैतिक काम है और इसे खत्म करने पर सुसाइड के मामलों में बढ़ोत्तरी हो सकती है।
कानूनी खींचतान काफी पहले से
इस कानून को हटाने की कोशिश काफी पहले से हो रही है। 1978 में आईपीसी
संशोधन बिल राज्यसभा में पास हो गया, जिसके जरिए सेक्शन 309 को खत्म किया
जाना था। लेकिन इससे पहले कि यह बिल लोकसभा में पहुंचता, संसद भंग कर दी गई
और बिल पास न हो सका।
1987 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि भारतीय संविधान के तहत
मिलने वाले राइट ऑफ लाइफ में जीने और जान देने, दोनों ही अधिकार समाहित
हैं। इसके साथ ही, धारा 309 को खत्म कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस
फैसले को 1994 में बनाए रखा। हालांकि, 1996 में पांच जजों की बेंच ने फैसला
दिया कि संवैधानिक तौर पर मिलने पर राइट टू लाइफ में जान देने का अधिकार
शामिल नहीं है और धारा 309 वैध है। इसके बाद 2008 में लॉ कमीशन ने इसे
हटाने का सुझाव दिया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)