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30 नवंबर 2014

ISIS तक पहुंचने के लिए 20000 साइट्स खंगालने वाले आरिफ का होगा नार्को, जानें पूरी कहानी

फोटो: आरिफ माजिद 
 
मुंबई: आतंकी संगठन आईएसआईएस के लिए जंग लड़ने इराक गए आरिफ माजिद  से एनआईए की पूछताछ में कई अहम जानकारियां मिली हैं। एनआईए अब उसका नार्को टेस्ट कराने की योजना बना रही है। शुक्रवार को गिरफ्तार किए जाने के बाद 8 दिसंबर तक के लिए रिमांड में भेजे गए आरिफ ने बताया है कि आईएसआईएस तक पहुंचने के लिए उसने 20 हजार से ज्यादा वेबसाइट्स को खंगाला। एक अंग्रेजी अखबार ने आरिफ द्वारा एनआईए को दी गई जानकारी को सूत्रों के हवाले से प्रकाशित किया है। जानें, कैसा इराक पहुंचा और वहां से वापस लौटा आरिफ 
 
ऐसे हुई शुरुआत 
आरिफ और उसके 6 दोस्त शाम की नमाज के वक्त मस्जिद पर इकट्‌ठे होते थे और वहां ज्यादा समर्पित मुसलमान बनने के तरीकों के बारे में चर्चा किया करते थे। आरिफ ने इस मकसद को पूरा करने के लिए वेबसाइट्स सर्च करने शुरू किए। इस दौरान, उसे आईएसआईएस के बारे में पता चला और वह इस संगठन से काफी प्रभावित हुआ। इसके बाद, आरिफ आईएसआईएस से संपर्क करने की कोशिश करने लगा। आखिरकार एक वेबसाइट पर उसे अपने काम का एक नंबर मिल ही गया। आरिफ ने बताया कि इस नंबर को पाने के लिए उसने 20 हजार से ज्यादा साइट्स खंगाले। 
 
आईएसआईएस से मिला लोकल कॉन्टैक्ट  
इस नंबर पर बातचीत करने के बाद आरिफ को कल्याण के पास भिवंडी के रहने वाले एक शख्स का नंबर मिला। इसके बाद, आरिफ ने यह सारा घटनाक्रम अपने दोस्तों को बताया। फहाद शेख, अमन टंडेल और शाहीन टंकी उसके साथ इराक जाने के लिए तैयार हो गए। भिवंडी के लोकल कॉन्टैक्ट ने आरिफ को यात्रा के लिए जरूरी रकम देने के लिए हामी भरी। इसके बाद, ये सभी राहत ट्रेवेल्स नाम की ट्रेवेल एजेंसी के संपर्क में आए। इस एजेंसी ने इनके इराक जाने का बंदोबस्त किया। इराक के हालात उस वक्त तक काफी बिगड़ चुके थे, इसलिए इन्होंने बहाना बनाया कि वे तीर्थयात्रा पर जा रहे हैं। 
 
लोकल कॉन्टैक्ट ने दी ढाई लाख से ज्यादा की रकम 
लोकल कॉन्टैक्ट से मिले पैसों से 60 हजार रुपए प्रति यात्री के हिसाब से पेमेंट करने के बाद ये चारों इराक के लिए 25 मई के लिए निकले। आरिफ ने दक्षिणी मुंबई के डोंगरी स्थित अजमेरी टूर्स एंड ट्रेवेल से वीजा और अन्य दस्तावेज हासिल किए। चारों कल्याण से अलग-अलग घर से निकले और लोकल ट्रेन से मुंब्रा स्टेशन पहुंचे। मुुंब्रा में भिवंडी के लोकल कॉन्टैक्ट ने उन्हें और पैसे दिए। इसके बाद, ये चारों मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पहुंचे और इत्तिहाद एयरलाइंस की फ्लाइट से अबू धाबी पहुंचे। अबू धाबी से ये इराक गए। 27 मई को कर्बला, फिर 30 मई को बगदाद पहुंचे। यहां तक वे तीर्थयात्रियों के साथ आए थे। 31 मई को ये स्थानीय बाजार में गए और वहां से अपने लोकल गाइड को धता बताते हुए फरार हो गए। 
 
 
मिला साफ सफाई और महिलाओं की पहरेदारी का काम 
आरिफ के दोस्त शाहीन टंकी को आईएसआईएस के एक शख्स का फोन आया और उसने उन्हें फल्लुजाह से टैक्सी हायर करने को कहा। यह जगह मोसुल के काफी करीब है। मोसुल में ही 40 भारतीय मजदूरों को अगवा किया गया था। मोसुल पहुंचने के बाद इन्होंने इराकी संपर्क से कॉन्टैक्ट किया। उसकी मदद से आईएसआईएस के हिंद कैंप पहुंचे। इस कैंप ने उन्हें आईएसआईएस की विचारधारा, मिशन आदि के बारे में जानकारी दी गई। यहीं पर इनका ब्रेनवॉश किया गया। इसके बाद इन्हें ट्रेनिंग कैंपों में भेज दिया गया। यहां इन्हें बताया गया कि आईएसआईएस चीफ बगदादी भारतीय पुरुषों को जंग के लिहाज से बेहद कमजोर मानता है और उन्हें मैदान ए जंग में नहीं भेजा जाएगा। यहां सिर्फ शाहिद टंकी ही शारीरिक परीक्षा पास कर पाया, जिसके बाद उसे हथियारों की ट्रेनिंग दी गई। आरिफ समेत बाकी तीन को आईएसआईएस के सोशल मीडिया टीम में भेज दिया गया। इसके अलावा, इन्हें सफाई, पानी भरने और बंधक बनाई गई महिलाओं की पहरेदारी काम दिया गया। 
 
 
जंग लड़ने की मनाही पर भड़का आरिफ 
आरिफ को जंग के मैदान में जाने पर मनाही थी। इस बात को लेकर उसे काफी कोफ्त होती थी। यहीं से उसका मूड बदलना शुरू हुआ। उसने देखा कि कुरान की नसीहतों का आईएसआईएस का कोई लेनादेना नहीं है। अातंकी लोगों की बेरहमी से कत्ल कर रहे थे और महिलाओं के साथ बलात्कार। जल्द ही ये चारोें अवसाद के शिकार हो गए। जिस जिहादी जन्नत का सपना लेकर वे गए थे, वो नर्क में तब्दील हो चुका था। जुलाई में आरिफ फायरिंग में घायल हो गया। उसकी हालत लगातार बिगड़ती गई क्योंकि कैंप में इलाज या खानेपीने की समुचित सुविधा नहीं थी। आरिफ ने किसी तरह अपने आकाओं को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वे उसे इलाज के लिए तुर्की जाने दें। तुर्की पहुंचने के बाद उसने अपने परिवार से संपर्क किया। इसके बाद आरिफ के पिता ने गृह मंत्रालय को जानकारी दी और उसे वहां से लाने का इंतजाम किया गया।

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