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16 नवंबर 2014

ये हैं राजस्थान की पहली महिला कुली, रहने को नहीं थी जमीन तो उठाया कदम

जयपुर. पीने को पानी नहीं रहने को जमीन नहीं, समय बीताने के लिए सिर्फ एक कमरे वाला कच्चा घर और इस घर को पक्का के उम्मीद में माथे पर सूटकेस और हाथों में बैग लिए वह एक प्लेटफॉर्म से दूसरे प्लेटफॉर्म पर आंधी-तूफान की तरह दौड़ती रहती है। यह कहानी है कि राजस्थान की पहली महिला कुली मंजू की।
 

अपनी परिस्थियों की वजह से मंजू को जयपुर रेलवे स्टेशन का रुख करना पड़ा। जयपुर स्टेशन पर लगभग 250 कुली हैं। उनके बीच एक मात्र लेडी कुली है मंजू। उन्हें देख कर लोग ये सोचते होंगे कि यह काम तो पुरुषों का है तो महिला क्यों कर रही है। लेकिन इसके पीछे का दर्द तो सिर्फ उस महिला को ही पता है जो ये काम कर रही है। दरअसल पति महादेव (बिल्ला नं. 15) के देहांत होने के बाद भी मंजू ने गरीबी के सामने घुटने नहीं टेके। मंजू का पति भी कुली का काम करता था। उन्होंने बिना किसी संकोच के अपने पति के काम को अपना लिया और निकल पड़ी स्टेशन की ओर।
 
एक इंटरव्यू में उन्होंने अपने इस नए जीवन के कई अनुभव बताए। वह बताती हैं कि किसी भी ट्रेन के आने पर मंजू के मन में एक ही सवाल रहता है कि 250 कुलियों में वो सामान उठाने की शुरुआत कैसे करें। इस बीच कई लोग तो मदद के मन से थोड़ा सामान उठाने के लिए बुला लेते हैं। लेकिन कई बार लोग सिर्फ इसलिए मना कर देते हैं क्योंकि वह महिला है। 
 
एक तरफ जहां पुरुष कुली 60 किलो वजन तक उठा लेते हैं वहीं मंजू भी 30 किलो तक वजन उठा लेती है। यह भी एक कारण है कि मंजू को ज्यादा सामान वाले लोग नहीं बुलाते। इसके बाद भी दिन के 500 रुपए कमाना मंजू के लिए अब कोई बड़ी बात नहीं। 
 
उन्होंने अपने साथी कुलियों की प्रशंसा करते हुए बताया कि यह पुरुष प्रधान पेशा है लेकिन वे मेरा सहयोग करते हैं। दो साल से कुली का काम कर रही मंजू बताती हैं कि अब जब तक एक बार वो स्टेशन न जाएं उन्हें संतुष्टी नहीं होती। स्टेशन पर 5 से 6 कुली ऐसे हैं जो उनका बहुत ख्याल रखते हैं। जब लोग कुली के लिए उनमें से किसी को बुलाते भी हैं तो वो पहले मंजू को भेजते हैं।
मंजू जयपुर के एक छोटे से गांव की रहने वाली है। घर से बाहर मंजू को कुछ अच्छे तो कुछ लोगों के गलत नजरों का शिकार भी होना पड़ता है लेकिन वो हिम्मत नहीं हारती और रोज बुलंद हौसले के साथ काम पर निकल जाती है। वो चाहती हैं कि अगर दो चार और महिलाएं आ जाएं तो एक टीम बनाकर काम करेंगे। इस प्रकार वो गरीब महिलाओं को अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रेरित करती हैं।
 
मंजू के तीन बच्चे हैं जो उनकी मां के पास गांव में रहते हैं। वह रोज अपने बच्चों से बात करती हैं। बच्चों की याद में कई बार उनकी आंखें नम हो जाती हैं लेकिन हौसले इतने मजबूत कि वो आंसू पोछ फिर काम पर लग जाती है। एक तरफ पड़ोस के लोग जहां मंजू को बूरी नजरों से देखते हैं वहीं उनकी मां को उनपर गर्व है कि उनकी बेटी किसी के आगे हाथ फैलाने की बजाए अपने बल पर बच्चों का पालन करने में सक्षम है।

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