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13 नवंबर 2014

परंपरा या अत्याचार: आदिवासियों में आज भी होता है लड़कियों का खतना


 
 
(केन्या के बारिंगो में लड़की को खतना के लिए तैयार करते परिवार के सदस्य)

इंटरनेशनल डेस्क। यह तस्वीर 'परंपरा' के नाम पर उस अत्याचार को बयां कर रही है, जिस पर केन्या सरकार प्रतिबंध लगा चुकी है। बारिंगो जिले के पोकोटा आदिवासी समुदाय की इस लड़की का खतना किया जा चुका है। अफ्रीकी जनजातियों में खतना को लड़कियों के मातृत्व में प्रवेश का प्रतीक माना जाता है। 
 
जानवरों की छाल में लिपटी और सफेद रंग में पुती लड़कियों को एक बड़े से पत्थर पर बिठाया जाता है। फिर बिना एनेस्थीसिया और दवा इस्तेमाल किए ब्लेड, टूटी कांच या कैंची से खतना की परंपरा निभाई जाती है। इस दौरान लड़कियां चीखती-चिल्लाती हैं, तो कुछ की आंखों से झरझर आंसू बहते हैं। गौरतलब है कि देश में तीन साल पहले ही सरकार ने जीवन से खिलवाड़ करने वाले इस परंपरा पर प्रतिबंध लगाया था।
 
चौंकाने वाला तथ्य ये है कि पूर्व अफ्रीकी देशों में प्रतिबंध के बावजूद एक-चौथाई केन्याई महिलाएं इस परंपरा से गुजर चुकी हैं। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के फोटोग्राफर सिगफ्रेड मोडोला को गोपनियता की शर्त पर एक के पिता ने बताया, "यह परंपरा है और हमेशा चलती रहेगी। लड़कियों का खतना इसलिए कराया गया, क्योंकि उनकी शादी होने वाली है।"
 
केन्या के जनजातियों में खतना को किसी उत्सव की तरह मनाया जाता है। इस दौरान महिलाएं जमकर शराब का सेवन करती हैं। यूनिसेफ के मुताबिक, अफ्रीका और मध्य पूर्व के 29 देशों की 12 करोड़ से भी ज्यादा महिलाओं का खतना किया जा चुका है। केन्याई कानून के तहत, अगर खतना के बाद लड़की की मौत हो जाती है, तो संबंधित को उम्रकैद की सजा का प्रावधान है।

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