उज्जैन। 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस
तारीख पर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का जन्म हुआ था।
पं. नेहरू को बच्चों से विशेष लगाव था, इसी कारण उनके जन्म दिन को बाल के
रूप में मनाया जाता है। इसी उपलक्ष्य में यहां जानिए शास्त्रों में बताए गए
एक अद्भुत बालक और यमराज से जुड़ा प्रसंग। प्राचीन समय में नचिकेता नाम का
एक बालक था, उसने जीते जी यमराज को खोजा और मृत्यु के गुप्त रहस्य से
संबंधित कई प्रश्न पूछे थे। यमराज ने भी बालक नचिकेता के प्रश्नों का जवाब
दिया था।
यमराज और नचिकेता का प्रसंग चर्चित है। यहां जानिए मृत्यु से जुड़े उन सवाल जो नचिकेता ने यमराज से पूछे थे...
नचिकेता ने यमराज से पूछे थे ये सवाल...
- किस तरह शरीर से होता है ब्रह्म का ज्ञान व दर्शन?
- क्या आत्मा मरती या मारती है?
- कैसे हृदय में माना जाता है परमात्मा का वास?
- क्या है आत्मा का स्वरूप?
- यदि कोई व्यक्ति आत्मा-परमात्मा के ज्ञान को नहीं जानता है तो उसे कैसे फल भोगना पड़ते हैं?
- कैसा है ब्रह्म का स्वरूप और वे कहां और कैसे प्रकट होते हैं?
- आत्मा निकलने के बाद शरीर में क्या रह जाता है?
- मृत्यु के बाद आत्मा को क्यों और कौन सी योनियां मिलती हैं?
- क्या है आत्मज्ञान और परमात्मा का स्वरूप?
मनुष्य शरीर दो आंखं, दो कान, दो नाक के छिद्र, एक मुंह,
ब्रह्मरन्ध्र, नाभि, गुदा और शिश्न के रूप में 11 दरवाजों वाले नगर की तरह
है, जो ब्रह्म की नगरी ही है। वे मनुष्य के हृदय में रहते हैं। इस रहस्य को
समझकर जो मनुष्य ध्यान और चिंतन करता है, उसे किसी प्रकार का दुख नहीं
होता है। ऐसा ध्यान और चिंतन करने वाले लोग मृत्यु के बाद जन्म-मृत्यु के
बंधन से भी मुक्त हो जाता है।
क्या आत्मा मरती या मारती है?
जो लोग आत्मा को मारने वाला या मरने वाला मानते हैं, वे असल में आत्मा
को नहीं जानते और भटके हुए हैं। उनकी बातों को नजरअंदाज करना चाहिए,
क्योंकि आत्मा न मरती है, न किसी को मार सकती है।
मनुष्य का हृदय ब्रह्म को पाने का स्थान माना जाता है। यमदेव ने बताया
मनुष्य ही परमात्मा को पाने का अधिकारी माना गया है। उसका हृदय अंगूठे की
माप का होता है। इसलिए इसके अनुसार ही ब्रह्म को अंगूठे के आकार का पुकारा
गया है और अपने हृदय में भगवान का वास मानने वाला व्यक्ति यह मानता है कि
दूसरों के हृदय में भी ब्रह्म इसी तरह विराजमान है। इसलिए दूसरों की बुराई
या घृणा से दूर रहना चाहिए।
क्या है आत्मा का स्वरूप?
यमदेव के अनुसार शरीर के नाश होने के साथ जीवात्मा का नाश नहीं होता।
आत्मा का भोग-विलास, नाशवान, अनित्य और जड़ शरीर से इसका कोई लेना-देना
नहीं है। यह अनन्त, अनादि और दोष रहित है। इसका कोई कारण है, न कोई कार्य
यानी इसका न जन्म होता है, न मरती है।
जिस तरह बारिश का पानी एक ही होता है, लेकिन ऊंचे पहाड़ों पर बरसने से
वह एक जगह नहीं रुकता और नीचे की ओर बहता है, कई प्रकार के रंग-रूप और गंध
में बदलता है। उसी प्रकार एक ही परमात्मा से जन्म लेने वाले देव, असुर और
मनुष्य भी भगवान को अलग-अलग मानते हैं और अलग मानकर ही पूजा करते हैं।
बारिश के जल की तरह ही सुर-असुर कई योनियों में भटकते रहते हैं।
कैसा है ब्रह्म का स्वरूप और वे कहां और कैसे प्रकट होते हैं?
ब्रह्म प्राकृतिक गुणों से एकदम अलग हैं, वे स्वयं प्रकट होने वाले
देवता हैं। इनका नाम वसु है। वे ही मेहमान बनकर हमारे घरों में आते हैं।
यज्ञ में पवित्र अग्रि और उसमें आहुति देने वाले भी वसु देवता ही होते हैं।
इसी तरह सभी मनुष्यों, श्रेष्ठ देवताओं, पितरों, आकाश और सत्य में स्थित
होते हैं। जल में मछली हो या शंख, पृथ्वी पर पेड़-पौधे, अंकुर, अनाज, औषधि
हो या पर्वतों में नदी, झरने और यज्ञ फल के तौर पर भी ब्रह्म ही प्रकट होते
हैं। इस प्रकार ब्रह्म प्रत्यक्ष देव हैं।
जब आत्मा शरीर से निकल जाती है तो उसके साथ प्राण और इन्द्रिय ज्ञान
भी निकल जाता है। मृत शरीर में क्या बाकी रहता है, यह नजर तो कुछ नहीं आता,
लेकिन वह परब्रह्म उस शरीर में रह जाता है, जो हर चेतन और जड़ प्राणी में
विद्यमान हैं।
मृत्यु के बाद आत्मा को क्यों और कौन सी योनियां मिलती हैं?
यमदेव के अनुसार अच्छे और बुरे कामों और शास्त्र, गुरु, संगति, शिक्षा
और व्यापार के माध्यम से देखी-सुनी बातों के आधार पर पाप-पुण्य होते हैं।
इनके आधार पर ही आत्मा मनुष्य या पशु के रूप में नया जन्म प्राप्त करती है।
जो लोग बहुत ज्यादा पाप करते हैं, वे मनुष्य और पशुओं के अतिरिक्त अन्य
योनियों में जन्म पाते हैं। अन्य योनियां जैसे पेड़-पौध, पहाड़, तिनके आदि।मृत्यु से जुड़े रहस्यों को जानने की शुरुआत बालक नचिकेता ने यमदेव से
धर्म-अधर्म से संबंध रहित, कार्य-कारण रूप प्रकृति, भूत, भविष्य और वर्तमान
से परे परमात्म तत्व के बारे में जिज्ञासा कर की। यमदेव ने नचिकेता को
'ऊँ' को प्रतीक रूप में परब्रह्म का स्वरूप बताया। उन्होंने बताया कि
अविनाशी प्रणव यानी ऊंकार ही परमात्मा का स्वरूप है। ऊंकार ही परमात्मा को
पाने के सभी आश्रयों में सबसे सर्वश्रेष्ठ और अंतिम माध्यम है। सारे वेद कई
तरह के छन्दों व मंत्रों में यही रहस्य बताए गए हैं। जगत में परमात्मा के
इस नाम व स्वरूप की शरण लेना ही सबसे बेहतर उपाय है।
नचिकेता से जुड़ा यह है प्रसंग
नचिकेता वाजश्रवस (उद्दालक) ऋषि के पुत्र थे। एक बार उन्होंने
विश्वजीत नामक ऐसा यज्ञ किया, जिसमें सब कुछ दान कर दिया जाता है। दान के
वक्त नचिकेता यह देखकर बेचैन हुआ कि उनके पिता स्वस्थ गायों के बजाए कमजोर,
बीमार गाएं दान कर रहें हैं। नचिकेता धार्मिक प्रवृत्ति का और बुद्धिमान
था, वह तुरंत समझ गया कि मोह के कारण ही पिता ऐसा कर रहे हैं।
पिता के मोह को दूर करने के लिए नचिकेता ने पिता से सवाल किया कि वे
अपने पुत्र को किसे दान देंगे। उद्दालक ऋषि ने इस सवाल को टाला, लेकिन
नचिकेता ने फिर यही प्रश्न पूछा। बार-बार यही पूछने पर ऋषि क्रोधित हो गए
और उन्होंने कह दिया कि तुझे मृत्यु (यमराज) को दान करुंगा। पिता के वाक्य
से नचिकेता को दु:ख हुआ, लेकिन सत्य की रक्षा के लिए नचिकेता ने मृत्यु को
दान करने का संकल्प भी पिता से पूरा करवा लिया। तब नचिकेता यमराज को खोजते
हुए यमलोक पहुंच गया। वहां यमराज और नचिकेता के बीच कई सवाल-जवाब हुए।
यम के दरवाजे पर पहुंचने पर नचिकेता को पता चला कि यमराज वहां नहीं
है, फिर भी उसने हार नहीं मानी और तीन दिन तक वहीं पर बिना खाए-पिए बैठा
रहा। यम ने लौटने पर द्वारपाल से नचिकेता के बारे में जाना तो बालक की
पितृभक्ति और कठोर संकल्प से वे बहुत खुश हुए। यमराज ने नचिकेता की पिता की
आज्ञा के पालन और तीन दिन तक कठोर प्रण करने के लिए तीन वर मांगने के लिए
कहा।
तब नचिकेता ने पहला वर पिता का स्नेह मांगा। दूसरा अग्नि विद्या जानने
के बारे में था। तीसरा वर मृत्यु रहस्य और आत्मज्ञान को लेकर था।
यम ने आखिरी वर को टालने की भरपूर कोशिश की और नचिकेता को आत्मज्ञान
के बदले कई सांसारिक सुख-सुविधाओं को देने का लालच दिया, लेकिन नचिकेता को
मृत्यु का रहस्य जानना था। अत: नचिकेता ने सभी सुख-सुविधाओं को नाशवान
जानते हुए नकार दिया। अंत में विवश होकर यमराज ने जन्म-मृत्यु से जुड़े
रहस्य बताए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)