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08 नवंबर 2014

गोवा: पहले दो चुनाव हारने और तीसरे में 750 वोटों से जीतने वाले पार्सेकर बने सीएम


 
नई दिल्ली. लक्ष्मीकांत पार्सेकर गोवा के नए मुख्यमंत्री बन गए हैं। शनिवार को पणजी में उहोंने पद और गोपनीयता की शपथ ली। शपथ लेने के बाद गोवा के नए मुख्यमंत्री ने कहा, 'मैं 25 साल से बीजेपी का कार्यकर्ता हूं। मुख्यमंत्री बनना मेरे लिए कोई अचरज भरी बात नहीं है।' सार्वजनिक तौर पर मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जाहिर करने वाले फ्रांसिस डिसूजा ने कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली है। वे उप मुख्यमंत्री बने रहेंगे। पार्सेकर के अलावा नौ मंत्रियों ने शपथ ली है। पहले पर्रिकर मंत्रिमंडल में शामिल रहे सभी मंत्रियों को पार्सेकर मंत्रिमंडल में भी मंत्री बनाया गया है। ये हैं फ्रांसिस डिसूजा, दयानंद मांड्रेकर, रमेश तावडेकर, महादेव नाइक, दिलीप पुरुलेकर, मिलिंद नाइक, एलिना साल्दान्हा (सभी बीजेपी) और रामकृष्ण उर्फ सुदिन धवलीकर व दीपक धवलीकर (दोनों महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी) से। लक्ष्मीकांत पार्सेकर का राजनीतिक सफर आसान नहीं रहा है। उन्होंने परिवार की इच्छा के खिलाफ जाकर 1988 में बीजेपी के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा था। तब उनके परिवार ने उन्हें 'बागी' के रूप में देखा था। 2002 में पहला चुनाव महज 750 वोटों से जीता था।
 
इससे पहले शनिवार को गोवा बीजेपी विधायक दल की बैठक में सर्वसम्मति से लक्ष्मीकांत पार्सेकर को मुख्यमंत्री पद के लिए चुना गया। मनोहर पर्रिकर ने शनिवार को ही गोवा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उनको रक्षामंत्री बनाए जाने की अटकले हैं। शनिवार को बीजेपी संसदीय बोर्ड की इस मुद्दे पर बैठक हुई। बैठक में गोवा के नए मुख्यमंत्री को लेकर चर्चा हुई। इस्तीफे से पहले पर्रिकर ने आर्कबिशप से भी मुलाकात की। इसके बाद वे राज्य बीजेपी दफ्तर में विधायकों की बैठक में हिस्सा लेने पहुंचे। 
 
 
विधानसभा के पहले दो चुनाव हार गए थे पार्सेकर 
पार्सेकर मनोहर पर्रिकर के नेतृत्व वाली गोवा सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे। 58 साल के लक्ष्मीकांत पार्सेकर उत्तरी गोवा की मंदरेम विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। वे 2002 और 2012 में पार्टी की गोवा इकाई के प्रमुख रहे हैं। साइंस में पोस्ट ग्रैजुएट लक्ष्मीकांत शुरुआती दौर में कुछ समय के लिए टीचर भी रहे। 1980 के दशक में वे आरएसएस की गतिविधियों से जुड़े। लक्ष्मीकांत पार्सेकर ने परिवार की इच्छा के खिलाफ जाकर बीजेपी के टिकट पर 1988 में महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के रमाकांत खलप के खिलाफ विधानसभा का चुनाव लड़कर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। उस दौर में उनका परिवार महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी का समर्थक था। इस बात का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि लक्ष्मीकांत के विरोधी रमाकांत के चुनाव प्रचार में इस्तेमाल होने वाला एक ट्रक लक्ष्मीकांत के पिता का ही था। लक्ष्मीकांत इस बारे में बताते हैं, 'मैंने तो अपना बोरिया-बिस्तर बांध लिया था और घर छोड़ने वाला था क्योंकि मेरे परिवार इस बात को पचा नहीं पा रहा था कि मैंने गोमांतक पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ा। तब बीजेपी को इस इलाके में शायद ही कोई जानता था। मुझे बागी के रूप में देखा गया था।'
 
लेकिन पार्सेकर को कामयाबी जल्दी नहीं मिली। 1988 के बाद 1999 में वे फिर से विधानसभा का चुनाव हार गए। 1999 की हार के बारे में पार्सेकर ने कहा, मेरे लिए संतोष की यही बात थी कि मैंने अपनी जमानत बचा ली थी। लेकिन इन नाकामियों से बेफिक्र पार्सेकर ने 2002 में फिर चुनाव लड़ा और इस बार उन्होंने रमाकांत खलप को हरा दिया। हालांकि उनकी जीत का मार्जिन महज 750 वोट था। 2007 में उन्होंने अपने जीत के अंतर को दोगुना किया और 2012 में भी चुनाव जीता। बीजेपी में उनका लंबा सफर और आरएसएस से जुड़ाव उन्हें मुख्यमंत्री बनाने में अहम फैक्टर रहे।

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