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05 नवंबर 2014

100 करोड़ ऑफर के दावे पर सांसद का पलटवार-पैसे लिए बिना टिकट नहीं देती हैं मायावती

 
 
लखनऊ. राज्यसभा सांसद अखिलेश दास ने बुधवार को पलटवार करते हुए कहा है कि बीएसपी सुप्रीमो बिना पैसे के किसी को टिकट नहीं देती हैं। अखिलेश दास का यह भी कहना है कि मायावती विधायक के लिए चुनावी टिकट के एवज में एक करोड़ रुपए लेती हैं। तीन नवंबर को बसपा में सभी पदों से इस्तीफा देने वाले दास ने कहा कि डेढ़ महीने पहले मायावती ने अपनी पार्टी के सभी सांसदों और विधायकों से दस लाख रुपए की राशि ली थी। दास ने ये आरोप तब लगाए हैं जब खुद मायावती ने बुधवार को लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि अखिलेश दास ने राज्यसभा टिकट के लिए उन्हें 100 करोड़ का ऑफर दिया था, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। बीएसपी नेता के मुताबिक, 'मैंने अखिलेश दास से कह दिया कि अगर आप 200 करोड़ भी दोगे तो भी नहीं दूंगी टिकट।' अखिलेश दास का राज्यसभा में कार्यकाल 25 नवंबर को समाप्त हो रहा है। अखिलेश दास उत्तर प्रदेश में कई शैक्षणिक संस्थान चलाते हैं। 

इससे पहले बसपा सुप्रीमो मायावती ने बुधवार को राज्यसभा के लिए बीएसपी प्रत्याशी का एलान कर दिया। आजमगढ़ के राजा राम और मुरादाबाद के वीर सिंह एडवोकेट को उन्होंने टिकट दिया है। दोनों ही दलित वर्ग से आते हैं। मायावती ने कहा कि पूर्वी यूपी के आजमगढ़ के रहने वाले राजा राम चार राज्यों और मुरादाबाद के वीर सिंह एडवोकेट तीन राज्यों के प्रभारी हैं। दोनों ने पार्टी हित के लिए अच्छा काम किया है। इसी को देखते हुए उन्होंने आगामी राज्यसभा चुनाव के लिए उन्हें पार्टी का प्रत्याशी बनाया है। उन्होंने उम्मीद जताई की विधायक दल पार्टी के फैसले का स्वागत करेगा।

दूसरे वर्ग के कैंडिडेट पर हो सकता था असंतोष
उन्होंने बताया कि 2012 विधानसभा चुनाव में पार्टी को जितनी सीटें मिली हैं, उसके हिसाब से दो प्रत्याशी ही लोकसभा में जा सकते हैं। बसपा की नीति रही है कि वह 'सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय' पर काम करती है। पार्टी यदि दूसरे किसी वर्ग के प्रत्याशी को कैंडिडेट बनाएगी तो अन्य वर्गों में असंतोष हो सकता है। इसी को ध्यान में रखकर पार्टी ने दलित कैंडिडेट ही उतारने का फैसला किया है।

सभी समुदाय को बराबरी का हिस्सा देने में असमर्थ हैं

मायावती ने बताया कि बसपा अपनी नीति के दम पर यूपी में चार बार सरकार बनाई है। पार्टी ने सर्वसमाज के लोगों का उचित प्रतिनिधित्व किया है। 2012 के विधानसभा में सभी पार्टियों ने सांठगांठ करके बसपा को हरा दिया। इसके बाद राज्यसभा चुनाव में बसपा सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय के राह पर चलते हुए एससी, एसटी, ओबीसी और सवर्ण जाति के सभी समुदाय के लोगों को बराबर की हिस्सेदारी देने में असमर्थ है

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