आपका-अख्तर खान

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14 अक्तूबर 2014

"क्या फर्क पड़ता है,

"क्या फर्क पड़ता है,
हमारे पास कितने लाख,
कितने करोड़,
कितने घर,
कितनी गाड़ियां हैं,
खाना तो बस दो ही रोटी है।
जीना तो बस एक ही ज़िन्दगी है।
फर्क इस बात से पड़ता है,
कितने पल हमने ख़ुशी से बिताये,
कितने लोग हमारी वजह से खुशी से जीए,
कुछ लोग जीते हैं अपने अहंकार के लिए
कुछ लोग जीते हैं अपने ख़्वाबों के लिए,
जबकी ज़िन्दगी भगवान ने दी है
खुशी से जीने के लिए,
और खुशियां बाँटने के लिए..."

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