आपका-अख्तर खान

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12 अक्तूबर 2014

एक लाश की तरह ,,,,

में ज़िंदा हूँ
लेकिन
एक लाश की तरह
मेरे इर्द गिर्द ,,आसपास
कुछ भी गलत होता है
कुछ भी अपराध होता
कुछ भी ज़ुल्म ज़्यादती होती है
में चुप रहता हूँ
में विरोध नहीं करता
में अपराधी के खिलाफ गवाही नहीं देता
में देश के लिए जीने की बात तो करता हूँ
लेकिन देश की सीमाओं पर जाकर लड़कर शहीद नहीं होता
इसीलिए कहता हूँ
में ज़िंदा हूँ
लेकिन
एक लाश की तरह ,,,,,,,,,,,,,,,,,

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