इंदौर। अपनी कई ऐतिहासिक धरोहरों के लिए जाना जाने वाले
मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले में ही शाहजहां की बेगम मुमताज की असली कब्र
है। बुरहानपुर में अपनी चौदहवीं संतान को जन्म देने के दौरान मुमताज की
मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उन्हें छह महीने तक यहीं दफनाया गया और बाद में
शव को कब्र से निकलवा कर शाहजहां अपने साथ आगरा ले गए, जहां मुमताज के शव
को ताजमहल में दफनाया गया।
जैनाबाद में है असली कब्र
सम्राट शाहजहां की बेगम मुमताज की मौत न तो आगरा में हुई और न ही उसे
वहां दफनाया गया। असल में मुमताज की मौत मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले की
जैनाबाद तहसील में हुई थी। मुमताज की कब्र ताप्ती नदी के पूर्व में आज भी
स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार लोधी ने जब 1631 में विद्रोह का झंडा
उठाया था तब शाहजहां अपनी पत्नी मुमताज महल को लेकर बुरहानपुर आ गया था। उन
दिनों मुमताज गर्भवती थी। सात जून 1631 में बच्चे को जन्म देते समय उसकी
मौत हो गई। दूसरे दिन गुरुवार की शाम उसे वहीँ आहुखाना के बाग में दफना
दिया गया। यह इमारत आज भी खस्ता हाल में है। इतिहासकारों के मुताबिक मुमताज
की मौत के बाद शाहजहां का मन हरम में नहीं रम सका। कुछ दिनों के भीतर ही
उसके बाल सफ़ेद हो गए। बादशाह जब तक बुरहानपुर में रहे नदी में उतरकर बेगम
की कब्र पर हर जुमेरात को वहां गया। जिस जगह मुमताज की लाश रखी गई थी उसकी
चारदीवारी में दीये जलाने के लिए आले बने हैं। यहां 40 दिन तक दीये जलाए
गए। कब्र के पास एक इबादतगाह भी मौजूद है। एक दिन उसने मुमताज की कब्र पर
हाथ रखकर कसम खाई कि तेरी याद में एक ऐसी इमारत बनवाऊंगा, जिसके बराबर की
दुनिया में दूसरी नहीं होगी। बताते हैं कि शाहजहां की इच्छा थी कि ताप्ती
नदी के तट पर ही मुमताज कि स्मृति में एक भव्य इमारत बने। शाहजहां ने ईरान
से शिल्पकारों को जैनाबाद बुलवाया। शिल्पकारों ने ताप्ती नदी के का
निरीक्षण कर इस जगह पर कोई इमारत बनाने से मना कर दिया। तब शहंशाह ने आगरा
की और रुख किया। जिस स्थान पर आज ताजमहल है उसको लेकर लोगों के अलग-अलग मत
है।
लाश लाने खर्च हुए आठ करोड़
कहा जाता है कि इसे बनाने के लिए ईरान, तुर्की, फ़्रांस और इटली से
शिल्पकारों को बुलया गया। उस समय वेनिस से प्रसिद्ध सुनार व जेरोनियो को
बुलवाया गया था. शिराज से उस्ताद ईसा आफंदी भी आए, जिन्होंने ताजमहल कि
रूपरेखा तैयार की थी। उसी के अनुरूप कब्र की जगह तय की गई। 22 सालों बाद जब
इसका काम पूरा हो गया तो मुमताज के शव को पुनः दफनाने की प्रक्रिया शुरू
हुई। बुरहानपुर के जैनाबाद से मुमताज के जनाजे को एक विशाल जुलूस के साथ
आगरा ले जाया गया और ताजमहल के गर्भगृह में दफना दिया गया। जुलूस पर उस समय
आठ करोड़ रुपये खर्च हुए थे।
बुरहानपुर में ही असली कब्र
बुहरानपुर स्टेशन से लगभग दस किलोमीटर दूर शहर के बीच बहने वाली
ताप्ती नदी के उस पर जैनाबाद (फारुकी काल), जो कभी बादशाहों की शिकारगाह
(आहुखाना) हुआ करता था। दक्षिण का सूबेदार बनाने के बाद शहजादा दानियाल ने
इस जगह को अपने पसंद के अनुरूप महल, हौज, बाग-बगीचे के बीच नहरों का
निर्माण करवाया। लेकिन 8 अप्रेल 1605 को मात्र तेईस साल की उम्र मे सूबेदार
की मौत हो गई। इसके बाद आहुखाना उजड़ने लगा। जहांगीर के शासन काल में
अब्दुल रहीम खानखाना ने ईरान से खिरनी एवं अन्य प्रजातियों के पौधे मंगवाकर
आहुखाना को फिर से ईरानी बाग के रूप में विकसित कराया। इस बाग का नाम
शाहजहां की पुत्री आलमआरा के नाम पर रखा गया।
बादशाहनामा के लेखक अब्दुल हामिद लाहौरी साहब के मुताबिक शाहजहां की
प्रेयसी मुमताज महल की जब प्रसव के दौरान मौत हो गई तो उसे यहीं पर स्थाई
रूप से दफ़न कर दिया गया था। जिसके लिए आहुखाने के एक बड़े हौज़ को बंद
करके तल घर बनाया गया और वहीँ पर मुमताज के जनाजे को छह माह रखने के बाद
शाहजहां का बेटा शहजादा शुजा, सुन्नी बेगम और शाह हाकिम वजीर खान, मुमताज
के शव को लेकर बुहरानपुर के इतवारागेट-दिल्ली दरवाज़े से होते हुए आगरा ले
गए. जहां पर यमुना के तट पर स्थित राजा मान सिंह के पोते राजा जय सिंह के
बाग में में बने ताजमहल में सम्राट शाहजहां की प्रेयसी एवं पत्नी मुमताज
महल के जनाजे को दोबारा दफना दिया गया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)