आपका-अख्तर खान

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23 सितंबर 2014

मुझे इतना सजाया जा रहा था,

था मैं नींद में और मुझे इतना सजाया जा रहा था,
बडे प्यार से मुझे नहलाया जा रहा था।
ना जाने था वो कौन सा अजब खेल मेरे घर में,
बच्चों की तरह मुझे कंधे पर उठाया जा रहा था।
था पास मेरा हर अपना उस वक्त,
फिर भी मैं हर किसी के मन से भुलाया जा रहा था।
जो कभी देखते भी न थे मोहब्बत की निगाहों से,
उनके दिल से भी प्यार मुझ पर लुटाया जा रहा था।
मालूम नही क्यों हैरान था हर कोई मुझे सोते हुए देखकर,
जोर जोर से रोकर मुझे जगाया जा रहा था।
कांप उठी मेरी रुह वो मंजर देखकर,
जहां मुझे हमेशा के लिए सुलाया जा रहा था।
मोहब्बत की इन्तहा थी जिन दिलों में मेरे लिए,
उन्हीं दिलों के हाथों आज मैं दफनाया जा रहा था।।

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