आपका-अख्तर खान

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12 सितंबर 2014

में हर्फ़ घोल दूं ,

"मेरे जज़्वात इस काबिल भी नहीं थे
कि स्याही में हर्फ़ घोल दूं ,
अंदाज़ नया था, आवाज़ तो पुरानी थी
यह फुसफुसा कर कौन कहता है ?
कि जज़्वात जोख़िम हैं
और हालात पोशीदा से
बीच में जो दहलीज पड़ती है
कभी लांघो तो चली आना
मुद्दतों से बैठा हूँ तेरे इंतज़ार में
फासलों के बीच फ़ैली फिजाओं में
उम्र बिखरी है
बची हो जिन्दगी आधी अधूरी सी
तो ले आना
मैं मरने के पहले जी तो लूँ ."------ राजीव चतुर्वेदी

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