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20 सितंबर 2014

ज़मज़म में मुझे

नज़्म "" (योगराज प्रभाकर)
आब-ए-ज़मज़म में मुझे गंगा दिखाई दे,
काशी अगर देखे, तुझे का'बा दिखाई दे !
मस्जिद की अजाँ मुझको आरती दिखे,
मंदिर में तुझे तेरा अल्लाह दिखाई दे !
तुझ को भी शब-ए-कद्र दीपावली लगे,
मुझ को भी ईद, होली दशहरा दिखाई दे !
तुलसी के दोहे तुझको तेरी आयतें लगें
कुरआँ मजीद में मुझे गीता दिखाई दे !
मंदिर में बटने लगे सेवय्यिओं को भोग,
मस्जिद में भी पूजा का दिया दिखाई दे !

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