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08 सितंबर 2014

रुई का गद्दा बेच कर,

Pawan Dixit

रुई का गद्दा बेच कर,
मैंने इक दरी खरीद ली।
ख्वाहिशों को कुछ कम किया मैंने,
और ख़ुशी खरीद ली ।
.
सबने ख़रीदा सोना,
मैने इक सुई खरीद ली,
सपनो को बुनने जितनी,
डोरी ख़रीद ली ।
.
मेरी एक खवाहिश मुझसे,
मेरे दोस्त ने खरीद ली,
फिर उसकी हंसी से मैंने
अपनी कुछ और ख़ुशी खरीद ली ।
.
इस ज़माने से सौदा कर,
एक ज़िन्दगी खरीद ली,
दिनों को बेचा और,
शामें खरीद ली।
.
शौक-ए-ज़िन्दगी कमतर से,
और कुछ कम किये,
फ़िर सस्ते में ही,
सुकून-ए-ज़िंदगी खरीद ली !
(साभार मेरे मित्र अमित चौधरी से)

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