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06 सितंबर 2014

एक प्रेमी द्वारा तेज़ाब से जलाई गयी प्रेमिका की कविता


Ali Sohrab,,,,

चलो,!फेंक दिया
सो फेंक दिया ....
अब कुसूर भी,बता दो मेरा
तुम्हारा इज़हार था
मेरा इनकार था
बस इतनी सी बात पर
फूँक दिया चेहरा ......
गलती शायद मेरी थी
प्यार तुम्हारा देख न सकी
इतना पाक प्यार था
के उसको समझ न सकी ....
अब अपनी गलती मानती हूँ
क्या ...अब तुम अपनाओगे
मुझको ?
क्या ...अब अपना बनाओगे
मुझको ?
क्या ...लबो से चूमोगे मेरे
होठों को ?
जो अब दिखाई नहीं देते
क्या ...सहलाओगे मेरे चेहरे को ?
जिन पर अब फफोले हैं
मेरी आँखों में देखोगे ,आँखें डाल
कर ?
जो अब अन्दर धस चुकी है
जिनकी पलके सारी जल चुकी हैं
चलाओगे अपनी उंगलिया,मेरे
गालो पर ?
जिन पर पड़े छालो से अब
पानी निकलता है ....
हाँ ! शायद तुम कर लोगे ...
तुम्हारा प्यार तो सच्चा है
है ना ???
अच्छा ! एक बात तो बताओ
ये ख्याल तेज़ाब का,कहाँ से
आया ?
किसी ने बताया ?
या ज़ेहन में तुम्हारे,खुद ही आया ?
अब कैसा महसूस करते हो तुम
मुझे जला कर ?
गौरवन्वित ???
या पहले से ज्यादा
और मर्दाना ???
तुम्हे पता है
सिर्फ मेरा चेहरा जला है
जिस्म अभी पूरा बचा है
एक सलाह दूँ !
एक तेजाब का तालाब बनवाओ
फिर उसमे मुझसे छलांग लगवाओ
जब पूरी जल जाउंगी मैं
फिर प्यार तुम्हारा गहरा होगा
और सच्चा होगा ...

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