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07 अगस्त 2014

1857 की क्रांति व आजादी आंदोलन में झुलसा थ


कोटाकोटा। देश में आजादी के लिए 1857 की क्रांति व 1947 में हुए आंदोलन का असर कोटा शहर में भी रहा। आजादी के लिए 14 से 16 अगस्त 1942 में जहां स्वतंत्रता सेनानियों ने रामपुरा कोतवाली पर कब्जा किया। वहीं वकील बेनी माधव को गिरफ्तार करने पर उनकी पत्नी राजकुमारी ने कोतवाली के दरवाजे पर तत्कालीन आईजी संतसिंह को थप्पड़ मारा था। आजादी से जुड़े शहर के स्मारकों औरऐतिहासिक स्थलों की एक पड़ताल -
यहां दफनाया मेजर बर्टन को 15 अक्टूबर 1857 आजादी की जंग के साथ ही कोटा में भी इसका असर शुरू हो गया। यहां कोटा रियासत की फौज में प्रमुख ओहदेदार लाला जयदयाल कायस्थ व मेहराब खां ने सेना में विद्रोह कर दिया। इस दौरान आजादी के दीवानों व सेना के बीच जमकर मारकाट मची। विद्रोही सैनिक राजभवन स्थित महल जिसमें अंग्रेजों का एजेंट मेजर बर्टन रहता था में घुसे और उन्हें उनके दो बेटों को तलवारों से काट दिया। इसके साथ ही उनके अंग्रेजी व भारतीय डॉक्टर को भी मार दिया। तब बृज राजभवन को उनके गेस्टहाउस में रूप में उपयोग किया जाता था। इन तीनों अंग्रेजों को नयापुरा में दफनाया गया, यहीं बाग के पास उनकी कब्रगाह है।
रामतलाई बुर्ज पर हुआ संग्राम 1857 की लड़ाई 6 माह तक दीपावली से शुरू होकर होली तक चली। इस दौरान राजपरिवार व विद्रोही आंदोलनकारियों के बीच जमकर लड़ाई हुई। इस दौरान कोटा शासक महाराव रामसिंह अपने टिपटा स्थित गढ़ से निकल नहीं पाए। एक प्रकार से उन्हें कैद रहना पड़ा, तब उन्होंने अंग्रेजों से सहायता ली। चंबल पार से अंग्रेजी सेना को कोटा आने में पसीना आ गया। दोनों ओर से जोरदार युद्ध हुआ। आखिर में अंग्रेजी सेना के माध्यम से रियासत की सेना ने लाला जयदयाल व मेहराब खां को पकड़ लिया। इस दौरान यहां दोनों ओर की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ,जिसमें सैकडों घोड़े दौड़े व हजारों की मौत हुई।
नीमड़ी जिस पर दी फांसी दोनों आंदोलनकारियों लाला जयदयाल व मेहराब खां को अंग्रेजी सेना के माध्यम से पकड़े जाने के बाद बृज राजभवन के सामने स्थित नीमड़ी पर फांसी पर लटकाया गया। इसके बाद ही महाराव रामसिंह टिपटा गढ़ से मुक्त हो पाए। इससे पहले जो लड़ाई हुई, उसमें पूरी धरती खून से लाल हो गई थी।
हर्बर्ट कॉलेज में होती थी बैठकें कोटा कॉलेज तब हर्बर्ट कॉलेज के नाम से जाना जाता था। यहां पढ़ने वाले छात्र नारेबाजी करते हुए जुलूस के रूप में उम्मेद क्लब तक जाया करते थे। यहां से सभी आजादी की रूपरेखा तैयार करते थे। उनकी बैठकें रामपुरा महात्मागांधी स्कूल में भी हुआ करती थी।
रामपुरा कोतवाली पर ४ दिन रहा कब्जा 13 अगस्त 1942 को महात्मागांधी की ओर से अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया गया। इसका असर कोटा में भी शुरू हो गया। कोटा में स्वतंत्रता सेनानियों ने रामपुरा कोतवाली पर कब्जा कर लिया। शहर के सभी दरवाजों को बंद कर दिया गया। 14 से 16 अगस्त 1942 तक इस पर स्वतंत्रता सेनानियों का कब्जा रहा। इस दौरान गुलाबचंद शर्मा पुलिस अधिकारी बने। स्वतंत्रता सेनानियों की मांग थी कि दीवान हीरालाल गोसालिया को हटाया जाए, आईजी संतसिंह को कोटा से बाहर भेजा जाए। इसके साथ ही भारत स्वतंत्र हो तो कोटा रियासत को उसमें मिलाया जाए। आखिर में महाराव को उनकी मांग माननी पड़ी। इस दौरान वकील बेनी माधव को आईजी संतसिंह ने गिरफ्तार कर लिया। इस पर उनकी पत्नी राजकुमारी ने कोतवाली के दरवाजे पर आईजी को थप्पड़ मारा था
महेराब खान (1815-1860 ई.) :महेराब खान का जन्म राजस्थान के करौली ज़िले में 11 मई, 1815 ई. को हुआ था। वे कोटा स्टेट आर्मी में रिसालदार के पद पर नियुक्त थे। उन्होंने 1857 ई. के विद्रोह के समय विद्रोही सेना को संगठित करके कोटा के एजेंसी हाउस पर अक्टूबर, 1857 ई. में आक्रमण कर दिया, जिसमें राजनीतिक एजेन्ट बार्टन अपने दों पुत्रों तथा कई लोगों के साथ मारा गया। इसके बाद उन्होंने जन नेता लाला जयदयाल भटनागर के साथ कोटा राज्य का शासन अपने हाथ में ले लिया। उन्होंने ब्रितानियों ने कई लड़ाइयाँ लड़ीं। 1859 ई. में ब्रितानियों ने उन्हें बंदी बनाकर मृत्युदंड दे दिया। तत्पश्चात् 1860 ई. में एजेंसी हाउस में उन्हें फाँसी पर लटका दिया।

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