आपका-अख्तर खान

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08 जुलाई 2014

ऐ अल्लाह तू मुझे माफ़ करना

में गलतियों  का  पुतला इंसान
क़दम क़दम पर मेने की  है गलतिया
ऐ अल्लाह तू मुझे माफ़ करना
मेरे चाहने वालों को सब्र देना
 मेरे दुश्मनो को खुसी देना
ऐ अल्लाह मेरा क़दम तेरी मर्ज़ी के बगैर तेरे पास आने का गुनाह का है
लेकिन तू और में जानता हूँ कुछ भी मुमकिन  नहीं तेरे बगैर
ऐ अल्लाह तू ही चाहता है जो होता है
ऐ अल्लाह तूने  ही ऐसे हालात बनाये मिलाया बिछड़ाया ,,खुशियां दी गम दिए
तूने ही  तड़पाया तूने ही वफादारी सिखाई ,,तूने ही बेवफाई दिखाई
ऐ अल्लाह मुझे  पता है तेरी मर्ज़ी के बगैर
तेरे वक़्त मुक़र्रर किये बगैर
तेरे पास आने की कोशिश करना गुनाह है इस गुनाह की कोई बख्शीश  नहीं
लेकिन तू ही बता यह हालात तूने ही तो पैदा किये
हाँ में गुनाहगार हूँ तो देना सज़ा मुझे
दोज़क की आग में तू चाहे मुझे जला
वहशी ,,लोगों के आगे तू मुझे डाल
खोलते पाने से जला ,,ग्राम तेल में तल
मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पढ़ता
मेरी दोज़क की आग का यह दर्द
उसकी बेवफाई के दर्द से तो कम होगा
ऐ अल्लाह में तुझ से मेरे  इस जुर्म की माफ़ी नहीं मांगूंगा
क्योंकि मेने प्यार प्यार सिर्फ प्यार किया है
वफादारी से ताबेदारी से ईमानदारी से प्यार किया है
बेवफाई का दर्द ,,झूंठ फरेब का दर्द मेने हाँ मेने सहा है
ऐ अल्लाह में कोई माफ़ी का तलब गार नहीं
में आ रहा हूँ मेरे लिए मुझे दर्दनाक सज़ा देने के लिए
तेरे पास जो भी साधन हो सब संभलकर रख
जितना भी दर्द तू दे सकता है देकर बता
में भी तेरे ज़ुल्म की इंतिहा देखना चाहता हूँ
तेरा हर ज़ुल्म ,,,दोज़क की आग की वोह तड़पन
उसकी बेवफाई के दर्द से कम बहुत कम होगा ,,,
इसीलिए तो में यह गुनाह किये जा रहा हूँ ,,,,,,,,,,

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