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26 जुलाई 2014

महमूद गजनवी ने इस शिवलिंग पर खुदवाया था कलमा




गोरखपुर. सावन के महीने में जहां लोग शिव की भक्ति में रंगे हुए हैं, वहीं एक ऐसी भी जगह है जहां पर शिव वर्षों से मुस्लिमों के भी आराध्‍य हैं। जिले में एक ऐसा स्वयंभू शिवलिंग है जो हिंदुओं के साथ मुस्लिमों के लिए भी उतना ही पूज्‍यनीय है। इस शिवलिंग पर एक कलमा खुदा हुआ है।
 
लोगों के अनुसार महमूद गजनवी ने इसे तोड़ने की कोशिश की थी, मगर वह सफर नहीं हो पाया। इसके बाद उसने इस पर उर्दू में 'लाइलाहाइल्लललाह मोहम्मदमदुर्र् रसूलुल्लाह' लिखवा दिया ताकि हिंदू इसकी पूजा नहीं करें। तब से आज तक इस शिवलिंग की महत्ता बढ़ती गई और हर साल सावन के महीने में यहां पर हजारों भक्‍तों द्वारा पूजा अर्चना किया जाता है।
 
गोरखपुर से 25 किमी दूर है समूचे भारत का सबसे विशाल शिवलिंग
 
गोरखपुर से 25 किमी दूर खजनी कस्‍बे के पास एक गांव है सरया तिवारी। यहां  पर महादेव का एक अनोखा शिवलिंग स्‍थापित है जिसे झारखंडी शिव कहा जाता है। मान्‍यता है कि यह शिवलिंग कई सौ साल पुराना है और यहां पर इनका स्वयं प्रादुर्भाव हुआ है। लोगों का मानना है कि इतना विशाल शिवलिंग पूरे भारत में सिर्फ यहीं पर है। शिव के इस दरबार में जो भी भक्‍त आकर श्रद्धा से कामना करता है, उसे भगवान शिव जरूर पूरी करते हैं।
 
नहीं हटा पाया शिव लिंग तो महमूद गजनवी ने खुदवा दिया इस पर कलमा 
 
मंदिर के पुजारी सुशील कुमार और श्रद्धालु राधेश्याम का कहना है कि यह शिवलिंग सिर्फ हिंदुओं के लिए हीं नहीं बल्कि मुस्लिमों के लिए भी अकीदत का केंद्र है। इसपर खुदा है मुस्लिमों का पवित्र शब्‍द कलमा खुदा हुआ है। उर्दू में 'लाइलाहाइल्लललाह  मोहम्मदमदुर्र् रसूलुल्लाह' लिखे इस शिवलिंग के बारे में बताया जाता है कि जब महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया और पूरे देश के मंदिरों को लूटता और तबाह करता इस गांव में आया तो उसने और उसकी सेना ने इस शिवलिंग को भी उखाड़ फेंकना चाहा।
सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है यह मंदिर
 
लाख कोशिशों के बाद भी इस शिवलिंग को गजनवी हटा नहीं पाया। थक हारकर उसने इस शिवलिंग पर उर्दू में कलमा खुदवा दिया और अपनी हार मान इस शिवलिंग के आगे झुकता हुआ वापस चला गया। तब से यह शिवलिंग दोनों धर्मों के लोगों के लिये आस्था का केंद्र बना हुआ है। पूरे सावन भर यहां पर लोग अपनी आस्था लेकर आते हैं और रमजान के महीने में मुसलमान भाई यहां पर आकर अल्‍लाह की इबादत करते हैं। आज यह मंदिर साम्प्रदायिक सौहार्द का एक मिसाल बन गया है।
 
पोखरे में नहाने से ठीक हो जाता है चर्म रोग 
 
पुजारी आनंद तिवारी, शहर काजी वलीउल्लाह और श्रद्धालु जेपी पांडे के मुताबिक इस मंदिर पर कई कोशिशों के बाद भी कभी छत नही लग पाया है। यहां के शिव खुले आसमान के नीचे रहते हैं। मान्‍यता है कि इस मंदिर के बगल मे स्थित पोखरे के जल को छूने से एक कुष्‍ठ रोग से पीड़ित राजा ठीक हो गए थे। तभी से अपने चर्म रोगों से मुक्ति पाने के लिये लोग यहां पर पांच मंगलवार और रविवार स्‍नान करते हैं और अपने चर्म रोगों से निजात पाते हैं।
झारखंडी बाबा सभी की कामनाओं को करते हैं पूरा 

भक्त राधेश्याम ने बताया कि यहां के लोग मानते हैं कि भगवान शिव इस जगह पर शिवरात्रि और सावन में आकर अपने सभी भक्‍तों के कष्टों को दूर करते हैं और उनकी मुरादों को पूरा करते हैं। शिव का यह दरबार अपने हर भक्‍त के लिये खुला है। यहां पर जाति और धर्म का सारी दीवारें आकर टूट जाती हैं और शेष रह जाती है सिर्फ भक्ति की शक्ति। इसमें डूबने वाला भले ही हिंदू हो या फिर मुस्लिम, सबकी कामनाओं को झारखंडी देव पूरा करते हैं।
 
पूजा करने से मिलती हैं कृपा
 
सावन माह भगवान धूर्जटी भूतभावन का माना जाता है। मान्‍यता है कि इस महीने में शिव को मनाना बेहद आसान होता है। इस महीने में भगवान अवघड़दानी की अराधना करने से उनकी कृपा मिल सकती है।

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