आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

14 जुलाई 2014

तुम्हारी जुबां को मेरा ज़िक्र अच्छा नहीं लगता

तुम्हारी जुबां को मेरा ज़िक्र अच्छा नहीं लगता
तुम्हारी आँखों को मुझे देखना अच्छा नहीं लगता
तुम्हारे दिमाग को मुझे सोचना अच्छा नहीं लगता
तुम्हारे होंटों को मेरा छूना अच्छा नहीं लगता
यह तुम भी जानते हो में भी जानता हूँ
तो फिर खुदा हाफ़िज़ खुदा हाफ़िज़ कहते है
शायद यह अलफ़ाज़ तुम्हे सुन्ना अच्छा लगता है
लो में मुर्दा हो रहा हूँ शायद यह देखना तुम्हे अच्छा लगता है
तुम्हे अच्छा लगता है ,,,तुम्हे अच्छा लगता है
जो तुम्हे अच्छा लगा वही सिर्फ वही मेने क्या है
लो देखो फिर तुम्हारी ख्वाहिश का करना मुझे अच्छा लगता है ,,,,,,

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...