"चिराग जलने को है
चरागाहों से शब्द लौट रहे हैं बेमन से
पेट में भूख लिए भावना में हूक लिए
शब्द भूखे रहे तो निःशब्द हो जायेंगे
और फिर न शोर होगा न संगीत न साहित्य
शब्द जब अर्थ खो बैठें तो उनका मर जाना ही बेहतर
और उसके बाद किसी आहट का अनुवाद नहीं होगा
वैसे भी इस दौर में दौरे पड़ रहे हैं लोगों को
और शब्दों के संक्रमण को साहित्य कहने लगे हैं लोग
मरीचिका में परी स्नान करके लौटती हो जैसे किसी कुत्सित कल्पना में
संक्रमण को साहित्य समझने वालो
आत्ममुग्धता की मरीचिका से उबरो
विकिरण की व्याख्या में साहित्य छिपा है
चिराग जलने को है
चरागाहों से शब्द लौट रहे हैं बेमन से
पेट में भूख लिए भावना में हूक लिए
शब्द भूखे रहे तो निःशब्द हो जायेंगे ." ----- राजीव चतुर्वेदी
चरागाहों से शब्द लौट रहे हैं बेमन से
पेट में भूख लिए भावना में हूक लिए
शब्द भूखे रहे तो निःशब्द हो जायेंगे
और फिर न शोर होगा न संगीत न साहित्य
शब्द जब अर्थ खो बैठें तो उनका मर जाना ही बेहतर
और उसके बाद किसी आहट का अनुवाद नहीं होगा
वैसे भी इस दौर में दौरे पड़ रहे हैं लोगों को
और शब्दों के संक्रमण को साहित्य कहने लगे हैं लोग
मरीचिका में परी स्नान करके लौटती हो जैसे किसी कुत्सित कल्पना में
संक्रमण को साहित्य समझने वालो
आत्ममुग्धता की मरीचिका से उबरो
विकिरण की व्याख्या में साहित्य छिपा है
चिराग जलने को है
चरागाहों से शब्द लौट रहे हैं बेमन से
पेट में भूख लिए भावना में हूक लिए
शब्द भूखे रहे तो निःशब्द हो जायेंगे ." ----- राजीव चतुर्वेदी
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