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02 मार्च 2014

सुंदरकांड से सीखें, कैसे पाएं जीवन में एक साथ सफलता, सुख और शांति



यह दिख रही सफलता को केवल अर्जित करने का ही नहीं, बल्कि नई-नई सफलता गढऩे का भी युग है। असफल कोई नहीं रहना चाहता। इसी कारण सतत् सफलता का तनाव असफलता से भी ज्यादा हो गया है। सुख अर्जित करना एक बड़ी सफलता माना जा रहा है। पढ़ा-लिखा हो या बिना पढ़ा-लिखा आजकल इतना सक्षम और जुगाड़ु तो आदमी होता ही जा रहा है कि इधर-उधर से सुख उठा ही लेता है।
सुख की सामान्य परिभाषा यही बना दी गई है कि जो हमारे अनुकूल हो वह सुख तथा विपरीत हो वह दु:ख। तो सुख अर्जित करना इस समय बहुत कठिन काम नहीं है। परन्तु सवाल यह है कि शांति कहां से लाएंगे? यह किसी तिजोरी से नहीं निकलती, किसी सैलेरी से नहीं मिलती, केवल बही-खाते में नहीं बसी है, किसी इंस्टीट्यूट में नहीं पढ़ाई जाती। यह तो आदमी को खुद अर्जित करना पड़ेगी। सुख के साथ जब शांति होगी तभी सफलता सही और स्थाई होगी तथा जीवन सुंदर होगा।
तुलसीदासजी ने रामचरितमानस के पाँचवें सौपान का नाम सुंदरकाण्ड रखा है। इसमें हनुमानजी की सफलताओं के प्रसंग हैं। इसके आरंभ के श्लोक का पहला शब्द ही शांति को समर्पित है- शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं... शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परमशांति देने वाले श्रीराम की वंदना इन पंक्तियों में की गई है। जीवन सुंदर ही तब है, जब सफलता के साथ शांति हो। सुंदरकाण्ड में हनुमानजी ने तीन बड़ी सफलताएं एक साथ अर्जित की थीं। सीताजी को संदेश दिया था, विभीषण के हृदय में श्रीराम का स्वभाव स्थापित किया और रावण के मन में प्रभाव।
सफलता पाने के लिए सबसे ज्यादा जरुरी हैं ये बातें...
दृढ़ निश्चय कार्य की सफलता के लिए जरूरी है। इस निश्चय में निश्चलता और जोड़ देना चाहिए। यानी हम कार्य को पूरा करने के लिए जितने अनुशासित रहेंगे उतने ही विनम्र भी होंगे। निश्चय मतलब अपने ही प्रति अनुशासन हेतु कठोर होना और निश्चल यानी दूसरों के मामले में कुटिल भावना न रखना। अपने ही द्वारा बनाए गए नियमों का अपने ही द्वारा पालन करना कोई आसान काम नहीं है।
बड़े-बड़े इसमें चूक जाते हैं। अपने अनुशासन का पालन करने के लिए हमें सतत् स्वयं के गुण-दोषों की पहचान और आंकलन करना होगी। इसके लिए एक सरल तरीका है सत्संग करते रहना। सत्संग में या तो हम किसी महापुरुष को सुन रहे होते हैं, देख रहे होते हैं और उन्हीं के द्वारा पहले बीत गए कुछ अवतारों, फकीरों की जीवनी सुन रहे होते हैं। जीवन का जो भी श्रेष्ठ होता है वह सत्संग में उस समय उतर रहा होता है। लिहाजा कोई चूक न हो जाए इसलिए आत्म अनुशासन काम आता है।
अपने व्यक्तित्व में दृढ़ता लाने के लिए सत्संग के माध्यम से महान हस्तियों की जीवन शैली को ऐसे सुना जाए जैसे पहले उन लोगों ने जीवन जिया है। चाहे राम हों या कृष्ण, जीसस हों या महावीर, बुद्ध हों। इन सबका जीवन बिल्कुल ऐसा था जैसे बांसुरी। बंसी अपनी आकृति और कृति से एक बड़ा सुंदर संदेश देती है। उसके अपने पेट में कुछ नहीं होता। जैसी फूंक मारी गई और उंगलियां चलाई गई वह मधुर संगीत संसार में फेंक देती है। इसी प्रकार हम सब परमात्मा की अंधरों की बंसी बन जाएं। स्वर हमारा होगा, क्रिया उसकी होगी। यही आत्म अनुशासन का एक स्वरूप है। इस अनुभूति में हम दृढ़ भी होंगे और निश्चल भी।
कैसे हो असली और नकली की सही पहचान...
भौतिक चीजों के असली-नकली होने के मापदण्ड स्थूल होते हैं। थोड़ी अक्ल हो तो हम पहचान सकते हैं कौन सी चीज सही है और कौन सी गलत। लेकिन जब जीवन के गुणों और दुर्गुणों की बात आती है और उसमें असली नकली की पहचान करना हो तो झंझट शुरू हो जाती है। मन गुणों और दुर्गुणों पर लेपन करने में बड़ा माहिर होता है। संसार के काम करते हुए त्याग और वैराग्य लाना कठिन हो जाता है, जबकि शांति के लिए दोनों जरूरी हैं। वैराग्य का सामान्यतया अर्थ गलत लगा लिया जाता है।
त्याग आदमी तभी कर सकता है जब उसके भीतर वैराग्य जागा हो। वरना त्याग भी एक तरह का शोषण बन जाएगा, सौदा बन जाएगा। वैराग्य का यह अर्थ नहीं होता कि चीजों को छोड़ दें। बल्कि इसका सही अर्थ यह होगा कि उन्हीं चीजों का सद्पयोग दूसरों के हित में होता रहे। जितना हम दूसरों को सही लाभ पहुंचा सकेंगे उतना ही हमारे वैराग्य और त्याग का मतलब सही होगा। इसलिए कहते हैं अपने भीतर थोड़ी वैराग्य की वृत्ति होना जरूरी है। जब-जब आप भीतर से अशांत हों थोड़ा अपने वैरागी लेवल को चैक करिए।
बिना वैराग्य जागे हम अपने भीतर का जो भी रूपांतरण करना चाहेंगे वह नकली होगा। इसलिए नकली सद्गुण हमें सरल मालूम पड़ते हैं। असली सद्गुण अपनाने के लिए साहस की जरूरत होती है। जब तक भीतर वैराग्य नहीं होता, साहस नहीं जागेगा। वैराग्य का अर्थ ही यह है छोडऩे की शक्ति। पकडऩे की चाह भय पैदा करती है और छोडऩे की इच्छा ताकत देती है। यदि वैराग्य भीतर है तो अहंकार छोडऩे का साहस आसान होगा। यह आध्यात्मिक समीकरण हम अपने हर सद्गुण और दुर्गुण के साथ लगा सकते हैं।

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