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12 मार्च 2014

बेड़ियों में जकड़ी जिंदगी, 12 सालों से अपनों ने ही कर रखा है कैद



अंकिरा. फरसाबहार के पेटामारा गांव निवासी धनेश्वर कालो 12 सालों से बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। तंग कोठरी की एक चारपाई पर ही उसकी जिंदगी सिमट कर रह गई है। लेकिन इस कैद के पीछे धनेश्वर की मानसिक बीमारी है। उग्र होने के कारण परिवार वाले चाहकर भी उसे बेड़ियों से स्वतंत्र नहीं कर पा रहे। धनेश्वर की मां श्रीमती बाई एवं पत्नी ईश्वरी बाई आंसू बहाने के सिवाए कुछ नहीं कर पा रहे हैं। परिवार वालों ने अपने सामर्थ्य के अनुसार कई जगह उसका इलाज भी कराया गया। पर किसी तरह का सुधार नहीं होने से उनकी हिम्मत भी साथ छोड़ गई। लंबे समय से इलाज कराने से परिवार की आर्थिक स्थिति भी बदहाल हो चुकी है। अब तो खाने के लाले भी पड़ने लगे हैं।
हालांकि परिवार के पास थोड़ी पैतृक जमीन है। पर कमाने वाला घर का मुखिया का ही यह हाल है एवं पत्नी दिन-रात उसकी देखरेख में जुटी हो, तो लालन-पालन की व्यवस्था कहां से हो। विशेष परिस्थिति में बड़े भाई के लड़के सहयोग करते हैं। पर हर समय सहयोग करना भी उनके लिए संभव नहीं है। घर में 55 साल की पत्नी एवं वृद्ध माता ही है।
शादी के वक्त बीमार नहीं था धनेश्वर
15 साल पहले शादी के वक्त धनेश्वर ठीक था। बाद में धीरे-धीरे उसका दिमाग असंतुलित होने लगा। वह उग्र होकर लोगों से मारपीट करने लगा। तब परिजनों को उसके विक्षिप्त होने की आशंका हुई। तब उन्होंने धनेश्वर का इलाज कराना शुरू किया। उग्र होकर किसी को नुकसान न पहुंचा दे, इस डर से धनेश्वर के हाथ एवं पैरों में बेड़ियां लगा दी गई।
सरकारी योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ
शासन द्वारा लोगों को सुविधा मुहैया कराने एवं लाभ दिलाने के लिए कई योजनाएं संचालित की जा रहीं हैं। पर इस परिवार को कोई लाभ प्राप्त नहीं हो रहा है।  सरपंच सहित संबंधित विभाग से कई बार परिवार के लोग गुहार लगा चुके है। 2009-10 तात्कालीन एसडीएम एवं प्रशासन के अन्य अधिकारी आकर धनेश्वर की सुध ली थी। पर घर वालों की माने तो इसके बाद न तो अधिकारी दोबारा देखने आए और न ही परिवार को कोई लाभ मिला। अंकिरा सरपंच शिवाराम का कहना है की ग्रामीणों द्वारा आवेदन प्राप्त होने पर पात्रता के आधार पर लाभ दिया जा रहा है। अगर यह परिवार इससे वंचित है, तो वे स्वयं रूचि लेकर उन्हें योजनाओं का लाभ दिलाएंगे। धनेश्वर की पत्नी एवं  मां ने रोते हुए कहा कि 4-5 साल पहले कुछ अधिकारी आकर सहयोग करने की बात कही थी। पर वे दोबारा झांकने तक नहीं आए। धनेश्वर के भतीजे दुर्योधन कालो ने बताया की वे लोग स्वयं अपने कामों में व्यस्त रहते हैं। इसके बावजूद आवश्यकता पड़ने पर पूरा सहयोग करते हैं।
अठारह साल से बंधन में बीत रही जिंदगी, घर में कैद है 24 वर्षीय युवक
 
अस्पतालों में जांच से लेकर दवाओं और उपचार तक निशुल्क होने के सरकारी दावों तथा कदम-कदम पर समाजसेवी व स्वयंसेवी संस्थाओं के अस्तित्व के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक रोगी अब भी खूंटे से बंधने को मजबूर हैं। कस्बे में युवक शिवराज की दुनिया भी खूंटे के आस-पास 15 फीट जगह तक सिमट गई।
 
कस्बे के शिवराज की जिंदगी उसी रस्सी और खूंटे तक सिमट कर रह गई है। अब मां उसे न जीने की दुआ दे सकती न ही मरने की बददुआ। मां सीता देवी के लिए उसका जवान बेटा मानसिक संतुलन बिगडऩे से बोझ बन गया है। नियति का दंश भुगतती मां 18 सालों से अपने जिगर के टुकड़े के पांव में रस्सी बांधकर पत्थर से बांध रखा है।
 
24 के युवक शिवराज छह वर्ष की उम्र में ही मानसिक संतुलन खो बैठा तभी यह रस्सी बंधा हुआ है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली मां के पास बेटे का इलाज कराने के लिए धन नहीं है। वह परित्यक्ता होने के हालात में पिछले कई वर्ष पीहर में रह रही है। कादेड़ा निवासी सीता देवी के तीन संतान है। बड़ा बेटा शिवराज जन्म के कुछ सालों बाद ही अपना मानसिक संतुलन खो चुका है। इस संदर्भ में मां सीता देवी ने बताया कि शिवराज न तो पीने के लिए पानी मांगता है और न ही नित्य कर्म के लिए बात समझा सकता है।
 
वह सुबह बेटे को नित्यकर्म से निपटाकर रोटी खिलाने के बाद उसे रस्सी से बांधकर मजदूरी पर चली जाती है। इसके बाद मजदूरी से आकर वह उसे पानी पिला पाती है। मां ने सीमित आर्थिक हालातों से बेटे का इलाज कराया मगर तंगहाली में आखिरकार घर पर उसे खूंटे से बांध कर रखना पड़ रहा है। शिवराज को पिछले दस वर्षों से विकलांग पेंशन के रूप में सरकारी मदद मिल रही है, परंतु इससे शिवराज का इलाज नहीं हो सकता है

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