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23 फ़रवरी 2014

आंखें बंद, हाथ-पैर पोलियोग्रस्त फिर भी अपनी कमाई से बनवाया मंदिर



धमतरी. लोग छोटी सी समस्या आने पर हिम्मत हार लेते हैं या मुंह मोड़ लेते हैं, लेकिन घनश्याम सेन संघर्ष का जीता जागता मिसाल है, जिसने बहु विकलांगता को पीछे छोड़ गांव के लोगों को आस्था से ऐसे जोड़ा कि लोग मंदिर पहुंचते ही उन्हें याद करते हैं।
जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर ग्राम अरौद (ली) निवासी घनश्याम सेन (22) पिता लच्छूराम सेन की आंख में बचपन से रौशनी नहीं है। हाथ व पैर पोलियोग्रस्त है। अपनी विकलांगता के चलते वह एक अक्षर भी पढ़ाई नहीं कर पाया। फिर भी घनश्याम जिंदगी से हार नहीं माना। 15 वर्ष की उम्र में टीवी, रेडियो, देवी मंदिरों के पास चलने वाले जसगीतों को सुनकर संगीत में रिहर्सल शुरू किया और बाद में जसगीत में दक्ष हुआ। घनश्याम के कंठ से सुआ नाचे सात बहनियां समेत कई जसगीत की धून निकलती है, तो लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं।
सुरीली आवाज और सुमधुर गीतों से प्रेरित होकर गांव के छात्र-छात्राओं ने मिलकर एक जसगीत पार्टी तैयार की और बहुविकलांग घनश्याम की आवाज गांव से राजधानी तक पहुंच गई। कई मंचों में वह अपने आवाज का जादू बिखेर चुका है। हुनर से उसने हजारों रुपए कमाए। घर से मंदिर व मंदिर से घर जाने के लिए वह किसी पर आश्रित नहीं है। गांव के मोड़ व रास्ते का नक्शा उसके दिमाग में बैठ गया है। मंदिर का ताला आम लोगों की तरह पलभर में खोल देता है। दिनचर्या की सारी प्रक्रिया आसानी से कर लेता है।
कट रही है जिंदगी
घनश्याम गरीब परिवार से है। माता-पिता व बड़े भाई की कमाई पर आश्रित है। बहुविकलांग होने के कारण उसे शासन से पेंशन, गरीबी रेखा कार्ड, स्मार्टकार्ड सुविधा का लाभ मिल रहा है। बड़े भाई दिलीप सेन ने बताया कि उसके लिए व्यवसाय खोलने लोन के लिए काफी प्रयास किया गया, लेकिन शासन से उन्हें लोन नहीं मिल पाया।
राजधानी के गायक को  पीछे छोड़ा
ग्रामीण रूपराम साहू, दिलीप सेन ने बताया कि प्रदेश के सबसे प्रसिद्ध जसगीत गायक के साथ उसकी दो बार स्पर्धा हुई। जिला स्तर पर आयोजित स्पर्धा में उसने प्रसिद्ध गायक को पीछे छोड़कर प्रथम स्थान प्राप्त किया।
गांव में बनवाया मंदिर
घनश्याम बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति का है। उन्होंने अपने हुनर की कमाई से गांव में मां दुर्गा व भगवान राम का मंदिर बनवाया। गांव में भक्ति भावना जागृत हो और भगवान के प्रति लोगों की आस्था बनी रहे, इसी उद्देश्य से उसने मंदिर निर्माण कराया। मां दुर्गा और भगवान राम के मंदिर की पूजा-अर्चना और श्रद्धा-भक्ति में उसकी दिनचर्या कटती है।

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