नई दिल्ली. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई के फैसले पर केंद्र और तमिलनाडु सरकार में तकरार बढ़
गई है। प्रधानमंत्री ने तमिलनाडु सरकार के फैसले को कानूनन गलत बताया है।
केंद्र सरकार अटॉर्नी जनरल के जरिए मामले को सुप्रीम कोर्ट भी ले गई है।
सुप्रीम कोर्ट से कहा गया है कि राजीव गांधी की हत्या के सात दोषियों को
रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के फैसले पर रोक लगाई जाए। कोर्ट ने यह अनुरोध
मान लिया और कहा कि फैसला होने तक यथास्थिति बनाई रखी जाए।
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल मोहन परासरन ने चीफ जस्टिस पी
सदाशिवम की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने दलील दी की जब तक केंद्र सरकार
की पुनर्विचार याचिका पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक तमिलनाडु सरकार को
हत्यारों को रिहा नहीं करने दिया जाए। संतन, मुरुगन और पेरारिवलन को 18
फरवरी 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत देते हुए उनकी फांसी की सजा को
आजीवन कारावास में बदल दिया था। केंद्र ने इस फैसले पर पुनर्विचार के लिए
याचिका दायर की है।
सुप्रीम कोर्ट ने हत्यारों की दया याचिका को केंद्र सरकार द्वारा 11
साल तक लंबित रखने का हवाला देकर इनकी सजा उम्रकैद में बदली थी। लेकिन,
गुरुवार को केंद्र सरकार ने दलील दी कि इनकी दया याचिकाओं को नाहक लंबित
नहीं रखा गया और न ही इस बीच इन्हें किसी पीड़ा से गुजरना पड़ा, क्योंकि
ये जेल में जिंदगी का आनंद ले रहे थे। कोर्ट ने इस दलील को ठुकरा दिया।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि फिलहाल सात में से किसी दोषियों को रिहा नहीं
किया जाएगा। अगली सुनवाई 6 मार्च को होगी। लेकिन, इस मामले पर राजनीति तेज
हो गई है।
पंजाब में सक्रिय हुए नेता
तमिलनाडु सरकार के राजीव गांधी के हत्यारों को रिहा करने के फैसले का
असर दूसरे राज्यों में भी दिखने लगा है। अब पंजाब में शिरोमणि गुरुद्वारा
प्रबंधक समिति ने बेअंत सिंह के हत्यारे आतंकवादी देविंदर पाल सिंह भुल्लर
को रिहा करने की मांग कर दी है।
2012 में भी शिरोमणि अकाली दल और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने
1995 में मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या की साजिश रचने वाले बलबंत
सिंह राजोआना को 'जीवित सिख शहीद' बताया था और प्रधानमंत्री से उसके लिए
माफी की मांग की थी। इस मांग का समर्थन पंजाब के कांग्रेसी नेता कैप्टन
अमरिंदर सिंह ने भी किया था।
कांग्रेस की राजनीति
जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस अध्यक्ष सैफुद्दीन सोज के पुत्र और राज्य
कांग्रेस के प्रवक्ता सलमान अनीस सोज ने अफजल गुरु का मुद्दा उठाया।
उन्होंने फेसबुक
पर लिखा कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जिस तरह से, राजीव गांधी के हत्यारों
की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया और संसद पर हमले के
दोषी मोहम्मद अफजल गुरु को फांसी की सजा दी गई, उसने मेरे सामने दुविधा की
स्थिति ला दी है। मैं इस विरोधाभास की स्थिति को स्पष्ट नहीं कर पा रहा
हूं। मुझे विश्वास है कि इस स्थिति को लेकर कश्मीर में बहुत ज्यादा आक्रोश
है। इसका यह अर्थ नहीं है कि कश्मीर के लोग राजीव गांधी के हत्यारों को
फांसी पर लटकाना चाहते हैं, लेकिन वास्तव में कश्मीरियों के अंदर एक भावना
है कि कानून के अनुसार सभी के साथ एक तरह का व्यवहार किया जाना चाहिए।'
सोज ने अफजल गुरु के परिवार को उसका पार्थिव शरीर सौंपने पर जोर देते
हुए कहा, “मेरा मानना है कि अगर राजीव गांधी के हत्यारों और अन्य निर्दोषों
को जेल से रिहा किया जा सकता है, तो अफजल गुरु के पार्थिव शरीर को भी उसके
परिवार को सौंप देना चाहिए।” हालांकि, सलमान ने इसे अपना निजी विचार
बताया।
कांग्रेस दिल्ली, तमिलनाडु और जम्मू-कश्मीर में इस मसले पर अलग-अलग
राजनीति करती नजर आ रही है। कांग्रेस के नेताओं के बयानों पर एक नजर:
राहुल गांधी: राहुल
ने कहा कि जब प्रधानमंत्री के हत्यारों की रिहाई हो सकती है तो आम आदमी
की सुरक्षा का क्या होगा? कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने उनके बयान पर टीवी
चैनल पर सफाई दी कि राहुल गुस्से में नहीं, बल्कि दुखी थे।
मनमोहन सिंह: प्रधानमंत्री
के मुताबिक राजीव गांधी की हत्या भारत की आत्मा पर हमला था। लेकिन
हत्याकांड की जांच करने वाले एक सीबीआई अफसर के. राघोथामन का कहना है,
'पूरा दोष यूपीए सरकार का है, जिसने अप्रैल 2000 से अगस्त 2011 तक तीनों
की दया याचिकाओं को लंबित रखा। यूपीए ने राजीव गांधी की आत्मा को धोखा
दिया है।'
ए. गोपन्ना: तमिलनाडु में कांग्रेस के नेता ए. गोपन्ना ने
कहा कि जयललिता 1991 में राजीव गांधी की निर्मम हत्या का फायदा उठा कर ही
सत्ता में आई थीं और अब वह उनकी यादों को भुला दे रही है।
एआईएडीएमके- डीएमके की राजनीति
जयललिता: एआईएडीएमके प्रमुख और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री
जयललिता ने सात हत्यारों की रिहाई का फैसला कर मजबूत सियासी दांव चला तो
था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के 'स्टे' से उन्हें थोड़ा झटका लगा होगा। पर,
अपने मतदाताओं को वह इतना तो कह ही सकती हैं कि उनके वश में जितना था,
उन्होंने किया।
डीएमके: हत्यारों की सजा-ए-मौत उम्रकैद में बदलने के सुप्रीम
कोर्ट के फैसले के तत्काल बाद डीएमके प्रमुख करुणानिधि ने यह कह कर कि अगर
उनकी रिहाई हो तो मुझे दोगुनी खुशी होगी, राजनीतिक चाल चली थी। लेकिन,
जयललिता ने अगले ही दिन रिहाई का फैसला लेकर उन्हें काट दे दी। इसके बाद
करुणानिधि ने यह कह कर नया दांव चला, '2011 में जब मैंने उनकी सजा-ए-मौत को
उम्रकैद में तब्दील करने का प्रस्ताव दिया था तो जयललिता ने मजाक उड़ाया
था।'
लेकिन, करुणानिधि बार-बार अपना रुख पलटते रहे हैं। 2000 में उन्होंने
दोषियों की दया याचिका खारिज कर दी थी। उसके बाद से वह यह बयान भी देते
रहे हैं, 'अगर युवा नेता राजीव गांधी जिंदा होते तो वह भले पुरुष सच्चे
तमिलों की आवाज सुन कर और जयललिता के भूल जाओ और माफ करो की नीति पर चलते
हुए निश्चित तौर पर संतन, पेरारिवलन और मुरुगन की जान बचाने के लिए आगे
आते।'
पीडीपी
जम्मू-कश्मीर में विपक्षी पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी)
की नेता महबूबा मुफ्ती के अनुसार, “एक तरफ, राज्य में उग्रवादी गतिविधियों
के पनपने के बाद से यह पहले से ही देश के अन्य हिस्सों से कटा हुए है तो
दूसरी तरफ, इस तरह के निर्णयों से कश्मीर का संबंध देश के अन्य हिस्सों से
निश्चित तौर पर प्रभावित होगा।”
मुफ्ती का यह भी कहना है कि अफजल गुरु को कमजोर आधार पर फांसी की सजा
सुनाई गई थी और यूपीए सरकार ने फांसी की सजा पाए 28 दोषियों में से उसे
पहले स्थान पर रखा। सुप्रीम कोर्ट ने भी उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं किया था।
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