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21 फ़रवरी 2014

मीठी" सुषमा, "शरारती" कमल, "शरीफ" शिंदे और "मास्साब" मुलायम




"मीठी" सुषमा, "शरारती" कमल, "शरीफ" शिंदे और "मास्साब" मुलायम

"मीठी" सुषमा, "शरारती" कमल, "शरीफ" शिंदे और "मास्साब" मुलायम

नई दिल्ली। संसद में पिछले दिनों भले ही सांसदों की हरकतों ने अपने साथियों की आखों को मिर्च की जलन से लाल कर दिया हो, लेकिन शुक्रवार को जब लोकसभा का सत्र समाप्त हुआ तो ये सांसद ही सारे गिले-शिकवे भुला कर अपनी बातों से एक-दूसरे के दिलों में मिठास घोलते दिखे।

15वीं लोकसभा के अंतिम सत्र के अंतिम दिन सदन का माहौल बिल्कुल अलग था। एक-दूसरे के लिए सांसदों ने जो उपाधियां दी वो और भी अलग थीं। किसी ने किसी को मिठाई से मीठा बताया तो किसी ने किसी को शरारती। कहीं शराफत और किसी को गुरूजी के अलंकारों से नवाजा गया। विदाई की बेला में स्वस्थ लोकतंत्र की भावना को साकार करते सदन में किसने क्या कहा, आइए जाने....

शिंदे ने बखानी सुषमा की मिठास

गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने सुषमा स्वराज के बारे में कहा कि सुषमा जी जब नाराज होती हैं तो मैं चिंतित हो जाता हूं कि अब वह मुझसे बात करना बंद कर देंगी। लेकिन जैसे ही वह सदन से बाहर आती हैं तो उनके शब्दों की मिठास के आगे मिठाई भी फीकी पड़ जाती है।

कमल की शरारत, शिंदे की शराफत

सुषमा ने भी शिंदे की तारीफ करते हुए कहा कि... मेरे भाई कमलनाथ ने कई मौकों पर शरारत की, लेकिन शिंदे जी की शराफत ने सभी समस्याओं को हल कर दिया। सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और लालकृष्ण आडवाणी की तारीफ करते हुए वे बोलीं कि यह सोनिया जी की मध्यस्थता, प्रधानमंत्री जी की सदाशयता और आडवाणी जी की न्यायप्रियता ही थी, जिससे सदन की कार्रवाई सुनिश्चित होती है।

मुलायम बोले, वापस नहीं आए तो आओगे याद

सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह भी सदन में बड़े भावुक लगे। उन्होंने कहा कि इतने सालों तक यहां साथ रहने के बाद हम सभी बहुत निकट आ गए हैं। अब हम में से कुछ चुन कर वापस नहीं आए तो सभी को बहुत याद आएंगे।

गुरूजी जैसे मुलायम

शिंदे ने मुलायम की तारीफ करते हुए कहा कि... मुलायम सिंह जी वास्तविक तौर पर एक शिक्षक जैसे हैं। वह जल्द ही अपना आपा खो देते हैं, लेकिन वैसे ही शांत भी हो जाते हैं। तब वह हालात को वैसे ही समझाते हैं, जैसे एक शिक्षक अपने छात्रों को समझाता है।

मीरा बोलीं, हिमालय से ऊंची हो संसद की कीर्ती

लोकसभाध्यक्ष मीरा कुमार ने सदन से विदा लेते हुए कामना की कि संसद की कीर्ति एवं उपलव्धि हिमालय शिखरों से ऊंची हो तथा भावना और संवेदनाएं हिन्द महासागर से गहरी हों। उन्होंने इस मौके पर दो पंक्तियां भी पढ़ीं कि.... होने दो घनघोर अंधेरा, तूफानों को आने दो....जन्म की नहीं, कर्म की हो अर्चना, बाकी सब को जाने दो।

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