जबलपुर. नवरात्र का समय हो या फिर कैसा भी मौसम, यहां देवी मां के भक्तों की भीड़ पूरे साल जुटती है। लोगों की इस मंदिर के प्रति आस्था इतनी अडिग है कि दूर-दूर से भक्त यहां माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मान्यताओं के अनुसार आल्हा और उदल दो भाई जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था, वो भी शारदा माता के बड़े भक्त हुआ करते थे। इन दोनों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था। माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था।
आल्हा माता को शारदा माई कह कर पुकारा करता था और तभी से ये मंदिर भी माता शारदा माई के नाम से प्रसिद्ध हो गया। आज भी यही मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और उदल ही करते हैं। मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। तालाब से 2 किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे।
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