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10 दिसंबर 2013

दोस्तों हमारा देश मानवाधिकारों के प्रति कितना गम्भीर है .

दोस्तों हमारा देश मानवाधिकारों के प्रति कितना गम्भीर है ..और मानवाधिकार आयोग के चेयरमेन मानवाधिकार क़ानून देश में लागू करवाने के लिए कितने सजग और सतर्क है ..इसका अंदाज़ा इसी बात से लगता है के हमारे देश में उन्नीस सो अड़तालीस में हुए इस समझोते के तहत उन्नीस सो तिरानवे में क़ानून बनाया गया ..और उन्नीस सो चौरानवे में इस क़ानून को लागू कर पहले केंद्र और फिर राज्य स्तर पर मानवाधिकार आयोगो का गठन क्या गया .....अधिनियम में वेतन भत्तों संबंधित तो नियम बनाये गए ..सुविधाओं से संबंधित नियम लागू करवाये गए लेकिन देश की जनता को न्याय दिलवाने के मामले में अधिनियम की धारा तीस के प्रावधान के तहत सभी ज़िलों में मानवाधिकार न्यायालयों को खोला जाना है लेकिन अफ़सोस बीस सालों के इस लम्बे सफर में आज तक देश के किसी भी राज्य ने इन न्यायालयों को खोलने की पहल नहीं की है ..यहाँ तक के देश के मानवाधिकार आयोग के अध्यक्षों ने भी इस मामले में गम्भीरता से सरकार से कोई मांग नहीं की है .हालात यह है के मानवाधिकार हनन संबंधित मामलों की सुनवाई की प्राथमिकता तय नहीं हो पाई है विशेष न्यायालय नहीं खुलने से न्यायालयो की ऐसे मामलों के प्रति कोई जवाबदारी नहीं है .इतना ही नहीं शिकायत करने और शिकायत की जाँच करने कि प्रक्रिया भी विकेन्द्रीकृत कर ज़िले या सम्भागीय स्तर पर प्रतिनिधि बनाकर नहीं की गयी है इससे मानवाधिकार आयोग आम जनता और आम पीड़ितों से दूर हो गया है और सफेद हाथी साबित हो रहा है ..........ह्यूमन रिलीफ सोसाइटी के महासचिव एडवोकेट अख्तर खान अकेला और आबिद हुसेन अब्बासी सहित सभी लोग इन व्वयस्थाअों को लागू करवाने के लिए पिछले बीस सालों से इस दिवस को मानवाधिकार चेतना जागृत और काला दिवस के रूप में मनाते है लेकिन सरकार के कान पर जु  ही नही रेंगती है अख़बार भी इसे पूरी खबर नहीं बनाते है और इलेक्ट्रॉनिक मिडिया को तो मानवाधिकार हनन और मानवाधिकार जागृति से कोई लेना देना भी नज़र नहीं आता है ..सरकारे इस दिवस को मात्र ओपचारिक तोर पर ही मनाती है और इन हालातों में हमारे देश में मानवाधिकार क़ानून केवल ओपचारिक बन कर रह गया है .....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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