नई दिल्ली. छोटे पर्दे पर करीब 8 साल तक चले टीवी सीरियल
'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' की 'तुलसी वीरानी' यानी स्मृति ईरानी पिछले
कुछ सालों से सीरियल वगैरह में बहुत कम दिखती हैं। इसकी वजह है स्मृति की
राजनीति। स्मृति इनदिनों टीवी पर अभिनय नहीं बल्कि बहस करती हुई दिखती हैं।
इसी साल बीजेपी की उपाध्यक्ष बनाई गईं स्मृति ईरानी अपनी पार्टी के लिए
पूरी तरह से समर्पित हैं। 37 साल की स्मृति के मुताबिक, 'मेरा बीजेपी के
साथ जन्म का रिश्ता है।' इस समय वे गुजरात में सरदार पटेल की 'स्टेच्यू ऑफ
यूनिटी' के निर्माण पर नजर रख रही हैं। दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा के तौर
पर प्रस्तावित इस प्रोजेक्ट के निर्माण से जुड़े लोगों की एक वर्कशॉप को
स्मृति ने उसी दिन संबोधित किया, जिस दिन मूर्ति का शिलान्यास गुजरात के
मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी और बीजेपी के
वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने की। यह नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट
है।
टीवी पर आप अक्सर स्मृति को नरेंद्र मोदी की तारीफ या उनका बचाव करते
हुए सुन सकते हैं। स्मृति गुजरात से राज्यसभा सदस्य हैं। यह महज संयोग नहीं
है कि स्मृति जब 2011 में राज्यसभा के लिए चुनी गईं तो उनके फॉर्म पर
प्रस्तावक के तौर पर नरेंद्र मोदी के दस्तखत थे। स्मृति ने ग्लैमर की
दुनिया से राजनीति की खुरदुरी जमीन पर खुद अचछी तरह से स्थापित कर लिया है।
स्मृति राजनीति में इतना आगे आ गई हैं कि उन्हें मोदी ब्रिगेड की सबसे
अगुवा महिला बताया जा रहा है। बीजेपी में कुछ लोग उन्हें 'मोदी ब्रिगेड की
सुषमा स्वराज' भी कहते हैं। स्मृति मोदी को प्रधानमंत्री पद का काबिल
उम्मीदवार मानती हैं। स्मृति के बारे में कहा जाता है कि कारोबार जगत और
राजदूतों के साथ मोदी के जनसंपर्क की अहम कड़ी हैं।
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