"याद की परछाईयों में तुम मेरी पहचान करना
मैं तुम्हारे स्नेह के अवशेष सा
नज़र आऊँगा तुम्हें
याद की परछाईयों को अब प्रमाणों की जरूरत है नहीं
पहचान लेना
सूर्य के संकेत कहते हैं कि अब वह ढल चली हैं
चीखती हैं मौन में
सपनो में आती हैं
यंत्र की भाषा समझते लोग
यंत्रणा यादों की क्या समझेंगे ?
भावना के संकेत भौतिक धरातल पर भयावह हो गए हैं
सुकुमार से कुछ लोग सुकरात से पूछेंगे कि
सिकंदर कौन था ?
एक सन्नाटा युगों से मौन था
यह सुना है
याद का भूगोल आंसू में समाया है
यह सुना है
याद के भूगोल में भूकंप आया है
और उस भूकंप में हिलता है सब कुछ
विश्व का विश्वास भी
अन्दर का समन्दर भी
शब्द भी ...संगीत भी ...सपने भी ...
यादें भी ...मुकद्दर भी ...
रश्में भी ...सियासत भी ...रियासत भी ...रिश्ते भी ...
और रिश्तों तक पहुँचते रस्ते भी
रिश्तों की परिक्षा की घड़ी में कांपने लगते हैं हम
और ऐसे में
याद की परछाईयों में तुम मेरी पहचान करना
मैं तुम्हारे स्नेह के अवशेष सा
नज़र आऊँगा तुम्हें." ---- राजीव चतुर्वेदी
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